मुझे वे सारे रंग पसंद हैं
जो मेरी नानी को पसंद थे
लाल नारंगी हरे पीले
बिल्कुल चटकीले रंग
जिन रंगों के कपड़े पहनाकर
वो कहती थी मुझे
‘मेरा राजा बाबू’
कितने रंग सहेज रखे थे
मेरी नानी ने अपने में
उसकी दिव्य हँसी की धवलता
गहरी भूरी आँखें
वे लाल होंठ
जो थकते नहीं थे
मेरे लिए प्रार्थनाएँ करते
उसके मसालेवाले हाथ
जो कभी हल्दी तो कभी
मेहँदी से होते थे सने
आज भी नानी को याद करते
पहन लेता हूँ उसके खरीदे कपड़े
और ढूँढता हूँ वे सारे रंग
उसकी तस्वीर में…
***
सपने
आजकल मेरे सपनों में
रोज़ आते है पहाड़
नदी
हवाई जहाज
खेल के मैदान
लंबे लंबे रास्ते
और
नृत्य करते लोग..
मैं चाहता हूँ कि
चढ़ जाऊँ पहाड़ की किसी चोटी पर
तैर कर पार कर लूँ किसी नदी को
कर लूँ हवाई जहाज से पूरे विश्व का भ्रमण
खेल लूँ फुटबॉल का कोई मैच
चल पडूँ किसी का हाथ थामे
लंबे रास्तों पर
और
झूम लूँ जीवन की थिरकन लिये
समय के संगीत पर
स्वप्न टूटने से पहले ही…
***
सांता क्लॉज़
अक्सर कार्टून फिल्म्स को देखते
सोचता हूँ मैं
कि सबके पास तो हैं
उनकी इच्छापूर्ति करने वाली वस्तु
नोबिता के पास है डोरेमॉन
अलादीन के पास है उसका चिराग
और चाचा चौधरी के पास है साबू
पर मेरे पास क्या है
तभी मुझे एहसास हुआ कि
मेरे पास भी तो है
जादुई शक्ति रखनेवाली
आबरा का डाबरा या
खुल जा सिम सिम जैसे
शब्दों को बोले बिना
मेरी सभी अभिलाषाओं को
जाननेवाली
दिमाग में कोई बात आने से पहले ही
नींद में कोई ख़्वाब आने से पहले ही
सब पूरी कर देने वाली
मेरी सांता क्लॉज़
मेरी माँ…
***
पिता
मेरे पिता
माँ की तरह ही
मुझे खिलाते
मेरी देखभाल करते
मेरे अच्छे स्वास्थ्य के लिए
पूजा पाठ करते, मंत्र पढ़ते
मेरे पैर बन मुझे घुमाते फिराते
और मेरी सभी ज़रूरतों का ख्याल भी रखते
मेरी माँ
मुझे ज़िंदगी की कड़ी धूप से बचाने
फैला देती है अपना आँचल
मेरे कुछ कहने से पहले ही
समझ जाती है मेरी हर बात
मेरे लिए हौसले का सूरज
और चाँदनी सी शीतलता बन
घूमते रहती है मेरे इर्द गिर्द हर क्षण
और निराशा के काले बादलों को
फटकने नहीं देती मेरे आस पास
मेरे माता पिता
मेरे साथ चलते चलते
कर लेते हैं अपने कामों की
अदला बदली कभी
मैंने देखा है
अपने पिता को भी
ममता का रूप लिये
और माँ को भी कभी पिता बनते
***
मील का पत्थर
सोचता हूँ
ये रास्ते कहाँ तक जाते होंगे
उनमें कितने मोड़ आते होंगे
खेत खलिहान, नदी तालाब
हँसी खुशी, पर्व त्योहार
सभी से तो गुज़रते होंगे ये रास्ते
कहीं मिलता होगा सूखा रेगिस्तान
जहाँ भटकता होगा कोई प्यासा
कहीं झुग्गी झोपड़ी तो कहीं महल
जो करते होंगे इंतज़ार
अपने घरवालों के आने का
तो कहीं कोई खँडहर
अपने ही अकेलेपन से घबराकर
बुलाता होगा किसी राहगीर को…
उनमें से कोई राह
मुझतक भी तो आती होगी
और कहती होगी ‘चलो मेरे साथ’
और मैं पहाड़ सी यह देह लिए
एक जगह चुपचाप पड़ा
मील का पत्थर बन
बस निहारता रहता हूँ मुसाफिरों को
और दिखाता रहता हूँ उन्हें
उनकी मंज़िल की दिशा
***
हरियाता हुआ मैं
नदी किनारे खड़ा पेड़
बुझाता है अपनी प्यास
नदी की ममतामयी लहरों से
बतियाता है उसकी कल कल ध्वनि से
लेता है नमी उसकी गीली मिट्टी से
और फैला लेता है अपनी जड़ें
धीरे धीरे उनमें
आकाश
उस पेड़ को हरा रखने
करता है कभी अपने प्यार की वर्षा
तो कभी
निकाल देता है सूरज
ताकि पेड़ कर सके सहन
संघर्ष की धूप को भी
हवा भी उसकी डालियों पे झूम
फुसफुसाती है पत्तों से कानों में
डालती है झूले और
गाती है चिड़ियों संग संगीत
उस वृक्ष सा मैं
धरती सी मेरी माँ
आकाश से मेरे पिता और
हवा सी मेरी बहन
यही तो है मेरी दुनिया
जिनसे हरियाता रहता हूँ मैं हमेशा…