कविता : बोनज़ाई
वो अकसर बड़े प्रेम से सहेजता था अपने बोनज़ाई पौधे को बहुत ख्याल था उसे उसके रूप और बनावट का...
आस्था नवल का जन्म दिल्ली के साहित्यिक परिवार में हुआ। पिता डॉ. हरीश नवल और माता डॉ. स्नेह सुधा से बचपन से ही लेखन कला को विरासत में पाया। आस्था नवल ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से प्रथम श्रेणी में हिन्दी में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि ग्रहण की। यूजीसी से सीनियर छात्रवृत्ति प्राप्त की और साथ-साथ जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से हिन्दी नाटक में प्रो. अशोक चक्रधर के नेतृत्व में पीएच.डी. की। पीएच.डी. करते हुए उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ और मिरांडा हाऊस कॉलेज में अध्यापन कार्य भी किया।
उन्नीस वर्ष की आयु में उनकी प्रथम पुस्तक ‘आस्था की डायरी’ का लोकार्पण बलगेरिया के सोफिया विश्वविद्यालय में हुआ। उनकी दूसरी पुस्तक ‘लड़की आज भी’ (प्रथम काव्य संकलन) का लोकार्पण सम्माननीय कमलेश्वर जी के करकमलों द्वारा 2006 में दिल्ली में हुआ। इनके दूसरे काव्य संग्रह ‘विस्थापित मन’ का प्रकाशन भारत के हिन्दी साहित्य निकेतन द्वारा किया गया जिसका विमोचन 2016 में वर्जीनिया में किया गया।
पत्र-पत्रिकाओं में कविता और लेख द्वारा उनका निरंतर योगदान रहता है। सम्प्रति वह वर्जीनिया में रहती हैं और मोंटगमरी कॉलेज, मैरीलैंड,अमेरिका में हिन्दी पढ़ाती हैं। साथ ही हिन्दी से जुड़े कार्यों में विशेष योगदान देती हैं।
वो अकसर बड़े प्रेम से सहेजता था अपने बोनज़ाई पौधे को बहुत ख्याल था उसे उसके रूप और बनावट का...
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