गरिमा सक्सेना के चार नवगीत
१) रंग सारे उड़ गये शायद हवा में जिंदगी फिर श्वेत श्यामल हो गई है राह अब कैसे मिले घनघोर...
जन्मतिथि: 29 जनवरी 1990.
शिक्षा: बी.टेक.।
प्रकाशित कृतियाँ:
दिखते नहीं निशान (दोहा संग्रह)
है छिपा सूरज कहाँ पर (नवगीत संग्रह)-पुरस्कृत
संपादित कृतियाँ: दोहे के सौ रंग (सौ रचनाकारों का सम्मिलित दोहा संग्रह) भाग-१, भाग-२
समवेत संकलनों में रचनाएँ: 'गुनगुनायें गीत फिर से', 'दोहा दर्शन', 'कवयित्री सम्मेलन', 'मीत के गीत', 'हिंदी ग़ज़ल के युवा चेहरे', 'हिंदी ग़ज़ल का बदलता मिज़ाज़', 'नयी सदी के नये गीत', 'दोहा मंथन', 'गुनगुनाएँ गीत फिर से-2', '101 महिला ग़ज़लकार', 'काव्य उपवन', 'कुछ ग़ज़लें कुछ गीत', नयी पीढ़ी के गीत, बूँद-बूँद में सागर, गुनगुनायें गीत फिर से (भाग-३), १०१ प्रतिनिधि दोहाकार, नवगीत का मानवतावाद, 'सूरज बँधा रूमाल में, पाँव गोरे चाँदनी के, इक्कीसवीं सदी की ग़ज़लें।
सम्मान: हिन्दुस्तानी एकाडमी द्वारा युवा लेखन कविता सम्मान, नवगीत साहित्य सम्मान (नवगीतकार रामानुज त्रिपाठी स्मृति) सहित कई संस्थाओं से सम्मानित।
सम्प्रति: स्वतंत्र लेखन, कवर डिजायनिंग, चित्रकारी।
१) रंग सारे उड़ गये शायद हवा में जिंदगी फिर श्वेत श्यामल हो गई है राह अब कैसे मिले घनघोर...
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