कुलदीप सिंह भाटी की तीन कविताएँ
1. आख़िर कब तक नहीं बिखेरना चाहता है अब सूरज सुबह-शाम आसमान में सिंदूरी आभा खिलते हुए गुलाब भी दर्ज़...
1. आख़िर कब तक नहीं बिखेरना चाहता है अब सूरज सुबह-शाम आसमान में सिंदूरी आभा खिलते हुए गुलाब भी दर्ज़...
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