महिमा श्री की पाँच कविताएँ
1. राहतकाल गिलहरियाँ अपने कोटरों से निकलकर किटकिट करती अमरूद औ आम के पेड़ों पर धमाचौकड़ी मचाती औंचक हो खेल...
शिक्षा : स्नातकोत्तर पत्रकारिता (मा.च.रा.प.ज.वि.), एम.सी.ए.(इग्नू)
कविता संग्रह : "अकुलाहटें मेरे मन की", अंजुमन प्रकाशन, 2015। "जरूरी है प्रेम करते रहना", लोकोदय प्रकाशन, 2021 (शीघ्र प्रकाश्य)।
संप्रति : पब्लिक सेक्टर में सात साल काम करने के बाद (मार्च 2007-अगस्त 2014) वर्तमान में पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर अध्यापन कार्य।
1. राहतकाल गिलहरियाँ अपने कोटरों से निकलकर किटकिट करती अमरूद औ आम के पेड़ों पर धमाचौकड़ी मचाती औंचक हो खेल...
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