संध्या यादव की तीन कविताएँ
1) सिंड्रेला खो चुका है चमचमाता जूता, टूट चुका है अर्द्धरात्रि का जगमगाता दिवा स्वप्न, इच्छाओं की लड़ियाँ टूटी बिखरी...
कविता, कहानी, व्यंग्य, संस्मरण लेखन में रुचि। 'दूर होती नजदिकियाँ' और 'चिनिया के पापा' काव्य संग्रह प्रकाशित। टीवी, रेडियो, मंचों पर कार्यक्रमों का आयोजन। पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
सम्प्रति: मुम्बई में अध्यापिका।
1) सिंड्रेला खो चुका है चमचमाता जूता, टूट चुका है अर्द्धरात्रि का जगमगाता दिवा स्वप्न, इच्छाओं की लड़ियाँ टूटी बिखरी...
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