निधि सिन्हा ‘बुलबुल’ की पाँच कविताएँ
(1.) पिता जो बिन जताए, हर वादा निभाए। सींचे अपनी तनहाइयों को, जड़ बनकर। फिर हम तुम ऊँचाइयाँ छुएँ, और...
(1.) पिता जो बिन जताए, हर वादा निभाए। सींचे अपनी तनहाइयों को, जड़ बनकर। फिर हम तुम ऊँचाइयाँ छुएँ, और...
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