विभव भूषण की चार ग़ज़लें
1. क्यों ये सूखे हुए पत्ते मुझी से लगते हैं पाँव की ज़ेर, खरकती जमीं से लगते हैं वो इशारे,...
शोधार्थी, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय।
1. क्यों ये सूखे हुए पत्ते मुझी से लगते हैं पाँव की ज़ेर, खरकती जमीं से लगते हैं वो इशारे,...
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