योगेन्द्र गौतम की पाँच कविताएँ
१. खिड़कियाँ हमारे बीच के शून्य में असंख्य खिड़कियाँ थीं, जो खुलती थीं उस पार। झाँककर देखने के बजाय गिरने...
१. खिड़कियाँ हमारे बीच के शून्य में असंख्य खिड़कियाँ थीं, जो खुलती थीं उस पार। झाँककर देखने के बजाय गिरने...
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