मन के अरण्य में
भावनाओं की ओस से भीगी
कुशा पर
नंगे पैर घूमना
ठीक, इसी प्रकार है
तुम्हारे प्रेम में मेरे मन का होना
नम सा
कुछ शीतल, द्रवित
यहीं खुलता है वो द्वार
जिसमें जा कर लौटने को जी नहीं करता
हाँ…वहीं
जहाँ अनुराग आध्यात्म में बदलता है
दरअसल वो चहलकदमी कुशा पर
महज़ घूमने तक सीमित नहीं, बल्कि
वो चिंतन है
एक माध्यम है
अवचेतन मन को
चेतना व सकारात्मक स्फूर्ति से भरने का
संम्पूर्ण नकारात्मकता को
आशाओं की ओस में भिगो देने का माध्यम
मन के अरण्य में।