1.
रेत के तपते शहर में ख़्वाब झुलस जाते हैं
रोशनी के थपेड़ों में, रात सिसकती रही।
2.
तहस नहस कर आंधियां मासूम बन गयीं
टूटे हुए शाख की, उम्र हो चली थी
3.
अब मेरे गांव में पगडंडियां नहीं रहीं
लोगों ने मिट्टी जलाकर सड़क बना दिया
4.
कुछ तो जरूर था, तेरे-मेरे बीच
तू मुस्कराती रही, मैं बेसुध होता गया।
5.
शाख से टूटकर गिरता पत्ता, समझ न पाया
कि हवाओं में ज़ोर था या उम्र का तकाज़ा था
6.
गर शब्दों के चेहरे होते तो
कोई किताब, पूरी न होती
7.
उजालों की लौ वाले दीपों के तले, अंधेरे जागते रहे
दुनिया में, उजालों से रिश्तेदारी की रस्म चलती रही
8.
जड़ों से उखड़ने का सबब क्या बताऊं
हवाओं के निज़ाम में, ठिकाना ढूंढती कटी पतंग हूं
9.
भला कौन जान बूझकर उदासियों को पनाह देता है
न जाने क्यों, तेरे जाने से फ़िज़ाएं ग़मगीन हो जाती हैं
10.
न ज़माने से शिकायत, न किताबों से है गिला
मेरी ज़िन्दगी वही है, जहां मेरे करम ले गये।