[1] ‘धारणा’
काले, बड़ी-बड़ी जालियों वाले मोज़े
पहनने वाले को
भ्रम है …..
पैर नंगे नहीं
किन्तु …
सत्य?
सत्य कुछ और ही
वैसे ही …
हमारी ‘परम्पराएं’,
जो बची हैं ,
मात्र आवरण ,
छद्म रूप में
उनका वजूद ,
ले रहा साँसें
दीर्घ साँसें
शायद ..
अंतिम साँसें ||
[2] गुलाम
परिस्थितियों को आप नहीं बनाते
परिस्थितियां आपको बनाती हैं
अपना गुलाम…
पता नहीं ,
ये सच है या झूठ
इसमें क्या सच्चाई है
कुछ नहीं पता
बस लगता है , हम गुलाम हैं
परिस्थिति के या परिस्थितियों के
दिन बीतते जाते हैं
आयु बीतती जाती है
लेकिन ..हम
हम ग्रसित हैं , बुरी तरह
समस्या से………या
समस्याओं से
पता ही नहीं चलता
दिन है कि ..रात है
अच्छी है या कि.. बुरी बात है
समय कट रहा है,
कटता ही जा रहा है
हम त्रस्त हैं,
यातना से या
यातनाओं से
पता नहीं , अब तो ये सब आम है
हम ………. हम
परिस्थितियों के गुलाम हैं।