एक दृष्टि …
मैं एक स्त्री
अपने पूरे व्यक्तित्व
और अस्तित्व के साथ
अपने सपनों को
पंख देते हुए
सतरंगी दुनिया का
ताना बाना बुनते हुए
आधुनिकता की परिभाषा रचते हुए
विचारों की लड़ियां पिरोते हुए
स्नेहांगन में विचरते हुए
स्वदायित्वों को सहेजते हुए
अनेक पीड़ाओं से गुजरते हुए
आत्मचिंतन में लिप्त
जब देखती हूं तुम्हारी ओर
तो पाती हूं तुम्हें भी
अपनी इच्छाओं को दमित करते हुए
ज़िम्मेदारियों से जूझते हुए
घर परिवार की कमान सम्हालते हुए
सहचर की भूमिका निभाते हुए
स्नेहसिंचन करते हुए
संघर्ष पथ पर बढ़ते हुए
दर्द को भीतर समेटे हुए
अपने सम्पूर्ण पौरुष के साथ…
मेरे सपने तुम्हारा आकाश
मेरा स्नेह तुम्हारा आंगन
मेरी अभिव्यक्ति तुम्हारे विचार
पूरक हैं एक दूसरे के
मेरी पीड़ा तुम्हारा दर्द
मिलता हुआ एक सा
मैं स्त्री और तुम पुरुष
तुमसे फिर संघर्ष कैसा!
…
मैं स्त्री अपने अस्तित्व के साथ
और तुम अपने पौरुष के साथ!
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2.
तुम्हारे लिए
आशा का आंचल लिये
विश्वास के साथ
तुम्हारी उपलब्धियों में
मुस्कराते हुए
तुम्हारे दुःख में
तुम्हें सहलाते हुए
समग्रता के साथ
अपनत्व के साथ
सच्ची शुभकामनाओं के साथ,
क्या तुम भी हो
मेरे लिए…?