1.
गीत जो लिखा रहे हैं
मेरे ये हठीले नैन
नैन चाहते हैं मेरे
नैन बन जाइये
दिल में मचा है शोर
चलता नहीं है जोर
दिल चाहता है मेरा
चैन बन जाइये
मधुमाती गंध जैसे
डोलते हैं मेरे पॉंव
प्रेम डोर डार जार
बैन बन जाइये
घूमती हूँ कोर-कोर
मिलता नहीं है छोर
आप मेरे धाम उज्-
जैन बन जाइये
2.
मौन हूँ विचार में कि
प्रीति का अनूठा रंग
सृष्टि में न दूसरा हो
ऐसा उपहार दूँ ।
रंग में उमंग लिए
डोलती है गंध लिए
मन चाहता है तुम्हें
पुष्प सा निखार दूँ ।
चूम लूँ तुम्हारा भाल
चूम चूम अधरों से
चॉंद वाला तेज सारा
भाल पे उतार दूँ ।
मूक है सदा से प्रेम
शब्द में बॅंधेगा नहीं
कौन शब्द डाल प्रेम
सार को सॅंवार दूँ ।
3.
आ गया बसंत मृदु-
गात साथ त्याग लेके,
फाग राग घोल रंग
प्रेम में नहाइये ।
प्रियदर्शिनी का द्वार
कब से खुला है प्रिय (नाथ) ,
प्रियदर्शिनी के द्वार
नाथ चले आइये
त्याग तप छोड़ लोभ
मोह में फंसा है मन
सुधि बुधि देके प्रह्-
लाद को बचाइये
होली तो जलायी किन्तु
होलिका जली नहीं है ,
होलिका के साथ द्वेष
क्रोध भी जलाइये ।
4.
भाल पे लगा के रज
तेरे चरणों की मात्र,
शौर्य यशगान के प्र-
णेता बन जाते हैं।
आन-बान, शान-मान
आपने दिया जो ज्ञान,
मूर्ख कालिदास भी प्र-
चेता बन जाते हैं ।
एक मातु प्रियंका को
ऐसा वर चाहिए कि,
सृष्टि हेतु लोग ज्यौं सु-
चेता बन जाते हैं ।
आपकी दया का स्वर
जिनको मिला है वर,
राष्ट्र स्वाभिमान के वि-
जेता बन जाते हैं ।