(1)
वापस लौट जाओ
मृत्यु के देवता!
यह तुम्हारा समय नहीं है
यह वैचारिक रूदालियों का भी समय नहीं
न ही हृदय को चाक कर देने वाले
शाश्वत विलाप का
यह समय अभिसार का है
और प्रेम का
अपने हिस्से के उत्सवों
और संघर्षों के क्षण को जीने का समय
अभी बाकी है
कई यात्राएं, कई मंजिलें
कई जिम्मेदारी निभानी हैं
कई मां पिता को
देखना है
बच्चों को स्कूल से लौटते
सारे सपने बचे हैं, शेष!
अभी तो फूल ठीक से खिले भी नहीं हैं
इन्द्रधनुष में नहीं भरे सारे रंग
अभी मझधार में है
जीवन की नाव
उसे किनारे आने दो
यह शोक गीति का नहीं
यह सृजन संगीत का वक्त है
तो लौट जाओ
मृत्यु के देवता
(2)
हर चीज लौटता है,
अस्तित्व में,
मृत्यु के बाद जीवन लौट आता है, बचपन में
बीज लौटते हैं, बड़े वृक्ष में
पतझड़ एक दम से नए पते में…
हमारे कर्म हमारे गहन दु:ख में
क्षणिक सुखों में
परिवेश का पुरा तापमान बरसात में….
सारी संवेदना कला, कविता में
समय, सात दिन के सफर के बाद
इतवार के रूप
बस नहीं लौटा तो
हमारे पहले खत का जवाब
निस्संदेह…
नहीं लौटी मनुष्यता कभी भी…
अपनी संपूर्णता में…!
नहीं लौटा मुकम्मल न्याय
लोगों के जीवन में…
(3)
महामारी के बाद!
एक दिन जब
बुरा वक्त बीत जाएगा
ढेर सारा पानी बह चुका होगा
समय की नदी से
उदास हो चुकी होगी धरती
अपने सबसे प्रिय बच्चों के खोने पर
पीढ़ियों को बताने के लिए हमारे
सिर्फ दुःख की बातें और यादें होंगी
कितने घरों में नहीं लौटेंगे पिता!
नन्ही उंगलियां पकड़
बच्चे नहीं घुम पाएंगे
मुहल्ले की परिचित गलियों में
दूर तक
तोतली बोली में नहीं
सुना पाएंगे नर्सरी राइम्स
कितने प्रिए लोगों से हम नहीं मिलेंगे
और कितने लोग हमसे नहीं
मिल पाएंगे आखिरी बार
तब क्या सुनेंगे
अन्दर की आवाज़
क्या हम सुनेंगे फिर से
अस्तित्व के विस्मृत राग
धरती के बिसरा दिए गए धुन को
जिस पर फिर से बजेगा जीवन का इकतारा
क्या फिर से हम यकीं कर
पांएगे, प्रकृति, प्रेम
और कहानियों में?
(4)
कब दिन दुनिया बेहतर होगी
जब इंसान वापस पा लेगा सांसों
की गति, वापस
जब घर से बच्चे निकलेंगे
हँसते, हँसाते
स्कूलों में, पार्कों में
अठखेलियां करेंगे
तब इस उदास मौसम में रंगत आ जाएगी
एक दिन जब गलियों में
औरतें आएंगी, गाएंगी
रोजानामचे का कोरस
एक दिन नुक्कड़ की चाय दुकान
पर सब दोस्त एकत्रित होंगे
और जीवन के सारे गूढ़ सवाल हल करेंगे
हंसते हंसाते
एक दिन
नींद खुलेगी भोर में
और दु:स्वप्न की तरह सब कुछ
ख़त्म होगा
खौफ के सारे प्रेत विदा लेंगे
बारी बारी से
मानवता के चेहरे पर
मुस्कराहट खिल आएगी उस दिन
सपने फिर से उगेंगे जीवन में/
खेतों में, खलिहानों में
और श्रम से सिंचित होंगे
एक दिन फिर सब साझा होगा
दुःख भी, सुख
और सारे बचें सपने…
लोग नेपथ्य से निकलेंगे
रंगमंच पर आएंगे
दुःख सिमट जाएगा
कि बातों में, यादों में
तब सुख जीवन का इन्द्रधनुष हो जाएगा
सात रंगों के रूप में
सात सपनों के रूप में
(5)
अमृत के इतने पास रहता है, विष
कि हर मंथन में प्रकट होता है साथ साथ
हर प्रकाशित चीज का है,
एक अंधेरा पक्ष
धूप के हर कतरे से लिपटा होता है, छांव
हर विस्तृत चीज के
किनारे-किनारे होती है,
संकीर्णता की नोक.
महानता की हर कहानियों में
छुद्रता, स्थूल और सूक्ष्म रूप में
समाई होती है।
हर सीजर की सीढ़ियों पर
हल्की रोशनी में छुपा होता है
ब्रूटस!!!
हर विपरीत ध्रुव
मिला होता है, शून्य में
पूर्णता की सारी लड़ाई
खोती रही है,धार,
पूर्ण परिणाम की आस में
प्रेम की अधिकतर कहानियां अतृप्ति और दमन से बनी हैं
…और हमारे दौर की कुछ सबसे अच्छी कविताएं उदासी और दुःख से
एक बारीक सी रेख है,
हर विपरीत ध्रुव के बीच
यदि हम हर विपरीत विरोधाभास को
जीने लगते हैं, पूर्णता से
पूर्णता प्रतिरोध का सबब होता है
इस क्रम में
आसमान का सारा तनाव बारिश की बूंद में तब्दील हो
जाती है,
तनाव विश्रांति में बदलता है,
शब्द सूक्ति में बदल जाते हैं,
और दुःख अन्तत: मुक्ति के मार्ग में
और शरीर और आत्मा जलतरंग की तरह हिलते हैं
एक अदृश्य परछाईं के रूप मे
कि सिर्फ और सिर्फ इंकार से बजते हैं
दुःख के राग,
स्वीकार सुख की अंतिम निष्पति बन जाती है…
(6)
सिर्फ प्रकृति ही थी,
जिसने हर चीज को उसका तासीर दिया
सबसे सुन्दर चीज प्रकृति ने बनाया
सबसे अच्छा नृत्य तितलियां कर सकती थीं
सबसे ज्यादा श्रम चिटियां करती थीं
सबसे चटख रंग चांदनी रात का था
सबसे मस्त दिन मार्च के शुरुआती दिन थे
सबसे अच्छा गा सकती थी कोयल
सबसे साफ पानी गहरे कुंंए का था
सबसे ऊंचे थे पहाड़,
और सबसे निर्मल थीं नदियां
सबसे ज्यादा शीतलता वटवृक्ष ने दी
सबसे अच्छी कहानी नानी सुना चुकी थी
सबसे आकर्षक चेहरा उस सांवली
लड़की का था,जो
मुस्कराकर अचानक खामोश
हो गई थी।
सिर्फ एक प्रेम ही था
जिसने पूर्णता प्रदान की