तेतर दास को मैं बचपन से ही देख रहा था. कभी नदी किनारे की गाछी (बाग) में आम तोड़ते हुए तो कभी बारह बजिया ट्रेन से किसी मुसाफिर का सामान लेकर पैदल कोसों-कोस जाते हुए. उन दिनों बहुत गाँव ऐसे थे जहाँ कोई सवारी नहीं जा पाती थी. देखने में दुबला-पतला, कृशकाय, रंग पक्का, मझोला कद, पर ताकत इतनी कि ढाई मन चावल का बोरा पीठ पर लादकर खुदरा बिक्री के लिए बाज़ार से पैदल बिना कहीं रखे-रुके पेठिया पहुँचा दे.
गोरखपुर वाली मइया के दस कठवा खेत का बंटईदार था वो. घर के पीछे कभी अलुआ उखाड़ते तो कभी तम्बाकू का बिचड़ा रोपते, कभी सरसों की निकौनी करते तो कभी भीषण गर्मी में कोवारी (कुदाल) से रहड़ी (अरहर) तामते (कोड़ते) हुए अक्सर देखा करता था उसे.
तेतर जाति का ततमा था. कहते हैं कि उसके पूर्वज तांत से कपड़ों की बुनाई करते थे लेकिन अंग्रेज़ों के मशीनी कपड़ों से वे मुकाबला नहीं कर पाए और खेती बाड़ी में आ गए.
ठीक अस्पताल के बगल में हाईस्कूल फील्ड के सामने सड़क पर पटोरी जैसे शांत कस्बे में उन सबों का मड़ैया (झोंपड़ी) था. 8-10 घर ततमा, 3-4 घर दुसाध, 2-3 घर तेली हमलोगों की ज़मीन में बसाए गए असामी कहे जाते थे. तीन बहनों के बाद जन्म लेने के कारण उसका नामकरण तेतर कर दिया गया था.
उन दिनों बच्चे को मरने से बचाने के लिए अजीब–अजीब नाम रख दिए जाते थे—फेकन, गोबरा आदि.
तेतर का व्यक्तित्व बहुआयामी था. गाँव में जीने के लिए सारे स्थानीय कौशलों से सुसज्जित तेतर टाटी बनाने, खपड़ा छाने, लकड़ी चीरने, फसल काटने जैसे सभी कामों में समान रूप से निपुण था. वह चंद्रभवन के अमरूद, आम, फालसा, बेर, केला इत्यादि सारे अतिरिक्त फलों को सस्ते में खरीदकर बगल के पेठिया में बेचा भी करता था जिसमें उसकी माँ ‘तेतरा माय’ उसका सहयोग करती थी, लेकिन उसने अपनी पत्नी को कभी दुकानदार नहीं बनाया. कारण जो भी हो.
मौका मिलने पर कभी-कभी हमलोगों के बेल या केले के घौद पर भी हाथ साफ कर लिया करता था. लोग जानकर भी अनजान थे.
एक रात आम के मौसम में प्रह्लाद भइया ने छत से किसी को पेड़ से अंधेरे में आम तोड़ते देखा. दबे पाँव चुपके से पेड़ के नीचे पहुँच कर ऊपर टॉर्च मारा तो तेतर दास. अब तो तेतर की हालत पतली. बहुत कहने पर 2-4 डाल नीचे उतरा, फिर मारी छलाँग और ले लत्ता चल कलकत्ता. भइया फुटबॉलर थे लेकिन उसकी रफ्तार! सैकेंड में अंधेरे में विलीन हो गया.
एक हफ्ते बाद नमूदार हुआ. पूरा बदन कटा-छिला. भागने के क्रम में आगे राधे खटोड़ के कँटीले तार का शिकार हो गया. फिर अपनी तीसरी बीवी के मायके ‘धमौन’ पहुँचकर इलाज कराया, हिम्मत जुटाई और वापस यहाँ ड्यूटी में लग गया. हमारे यहाँ छोटी-मोटी चोरी को तेतर अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही समझता था.
किशोरावस्था में हम 3-4 मित्रों, प्रह्लाद भइया और फेकन ने नदी किनारे उसके साथ मित्र भाव से उठापटक करने की कोशिश थी लेकिन तेतर हम तीनों पर भारी पड़ गया था.
तेतर हाईस्कूल मैदान के किनारे रहने के कारण फुटबॉल भी खेलता था. खेलते समय सिर ज़मीन में गाड़कर खेलने के कारण लोगों ने उसका उपनाम ‘भूईंतक्का बैक’ (ज़मीन को देखने वाला खिलाड़ी जो बैक के पोजीशन पर खेलता हो) भी रख दिया था. उसके जैसे खाली पाँव के ज़्यादातर खिलाड़ी रेलवे लाइन पर ईंजन द्वारा त्यागे कोयले भी चुनते थे इसलिए उनकी टीम का नाम था ‘कोयला टीम’.
शाहपुर पटोरी भाप ईंजन के लिए वाटरिंग स्टेशन था. हर ट्रेन 10-15 मिनट तो रुकती ही थी. एक बार गरइड़ा रेलवे की फुटबॉल टीम उधर से गुज़र रही थी. स्टेशन से बाहर खिलाड़ीगण चाय पीने आ गये. दुकानदार नन्दू सिंह भी खिलाड़ी ही थे. बातों-बातों में चैलेन्जा-चैलेन्जी हो गई और रेलवे टीम को शाम के मैच के लिए रोक लिया गया.
उस दिन पटोरी की मुख्य टीम ‘राइज़िंग स्टार क्लब’ मुंगेर मैच खेलने गई थी. कहते हैं कि तेतर की कोयला टीम ने खाली पाँव ही रेलवे की प्रतिष्ठित टीम को ड्रॉ पर रोक दिया और लोगों ने तेतर को गोद में उठाकर पैसों से उसकी जेब और चॉकलेट से उसका मुँह भर दिया.
अशिक्षित होते हुए भी तेतर को कभी भी किसी से लड़ते झगड़ते नहीं देखा-सुना गया. शालीनता एवं मर्यादा तो उसके कण-कण में बसी थी. बात का इतना पक्का कि अगर उसने गछ लिया (वादा कर दिया) तो कुछ भी हो जाए ट्रेन पकड़ाने के समय तेतर हाज़िर नाज़िर होता.
पेठिया (हाट) के वसूले तरकारी (सब्ज़ी) के बोरे को पटना लक्ष्मी फुआ या बेबी दीदी के यहाँ पहुँचाने के लिए उसे ट्रेन, पहलेजा से महेन्द्रू घाट तक के पानी जहाज और रिक्शा आदि का भाड़ा जोड़कर मिलता था लेकिन तेतर पैसा बचाने के लिए देसरी स्टेशन उतर कर 10 मील गर्म बालू का दियारा पैदल लाँघकर पाल वाली नाव पकड़ता था और पटना गायघाट उतर जाता था. उसके तलवे ही उसकी चप्पल थे. सुबह से शाम तक विभिन्न कामों में व्यस्त तेतर को मैंने कभी-कभी ही अपनी मड़ैया के सामने चुक्कू मुक्कू बैठे सुस्ताते पाया.
जाड़े के दिन थे. रात में खाना खाकर अक्सर हम कुटियारी में घूरे के इर्द-गिर्द ईंट लेकर जम जाते थे. खेलावन महतो के छोटे भाई हजारी महतो उन दिनों आसाम से पैसे कमाकर महीनों में लौटे थे. वो आसामी ढोलक पर ताल देकर मस्ती में भुइयाँ बाबा के गीत गा रहे थे और हम उन द्वारा प्रदत्त ‘छलिया कसेली’ का रसास्वादन कर रहे थे. इसी बीच तेतर दास जी हाथ में लाठी लिए हुए प्रकट हुए और अन्य दिनों की तरह ‘बीती रात कैसे उनके मकई की रखवाली वाले मचान पर भूत चढ़ आया और उनके सीने पर सवार होकर कहानी सुनाने लगा’ बताने लगे. फिर आग तापकर तेतर दास जैसे ही पिछवाड़े वाले खेत की रखवाली के लिए बढ़े कि पूर्वनियोजित कार्यक्रमानुसार फेकन जोर जोर से चीखते-चिल्लाते ‘बचाओ-बचाओ’ करता हुआ उनके मचान पर चढ़ आया. मैं भी अजीब सी भूतहा आवाज़ निकालता हुआ उसके पीछे खेत में घुस गया और छिपकर मकई के पौधे को कभी यहाँ तो कभी वहाँ हिलाने लगा. तेतर बहादुर फेकन से चिपट कर डर के मारे काँपने लगे. फिर फेकन मचान से कूदकर अपने घर की ओर भागा और मैं भी उसे खदेड़ता हुआ वापस आ गया. दूसरे दिन हल्ला हो गया कि मकई के खेत में कल रात ब्रह्म पिशाच आया था जो फुलवारी के करौंदा पर रहता है. आज भी उस करौंदे के पास कोई नहीं फटकता क्योंकि पिशाच उसकी चौकीदारी करता है.
हमारे संयुक्त पारिवारिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग बना तेतर अपनी उपस्थिति एवं उपयोगिता से सभी को सराबोर रखता था.
एक केस में गवाही न देने के लिए एक दबंग व्यक्ति द्वारा बार बार धमकी देने के बावज़ूद तेतर ने कोर्ट में वो गवाही दी कि हमारा केस फतह हो गया. विरोधी पक्ष के बड़े वकील ने जिरह में बहुत कोशिश की ये साबित करने की कि तेतर हमलोगों का ख़ासम ख़ास आदमी है लेकिन सब व्यर्थ.
छोटकी मामा के साथ तेतर चारों धाम यात्रा और कई वर्ष प्रयाग संगम की रेत पर 1-1 महीने का कल्पवास भी कर चुका था.
3 वर्ष पहले अपने घर पटोरी गया तो सूचना मिली कि जोखन बाउजी के कुत्ते को शाम में घुमाने के क्रम में अचानक झटके से तेतर गिर पड़ा और उसकी हड्डी टूट गई. उसका तुरंत उपचार कराया गया और अभी वो घर पर है. मैं पहली बार उसकी मड़ैया में घुसा. उसकी आँखों में आँसू थे. वो काफी भावुक हो गया था. मैंने उसे सांत्वना दी. स्थानीय डॉक्टर को वहाँ कॉल पर बुलाया गया और दवा बढ़ाई गई. लेकिन तेतर फिर बिस्तर से उठ न सका. एक लड़के को उसकी तीमारदारी का ज़िम्मा देकर मुझे वापस दिल्ली आना पड़ा.
तेतर ने एक दिन लड़के से पूछा कि बउआ जी हैं न? उसने सच बता दिया कि वो दिल्ली गए.
उसी दिन तेतर ने प्राण त्याग दिए.
वैसे तो दुनिया का हर व्यक्ति अनोखा है लेकिन तेतर हमारे जीवन में सदा ही प्राणवंत रहेगा. ईश्वर उसकी आत्मा को चिर शांति दे और हमें उसकी कर्मठता, कर्तव्यपरायणता एवं समर्पण से प्रेरित करे.