1.
आंखों में दिख जाएगा
छुप नहीं सकते तुम खुद अपने आप से,
निगाहें तो मिलाओ दर्पण में जनाब से!
सच और झूठ सामने आ जाएगा,
तुमने अगर कुछ गलत किया…
तुम्हारी आंखों में दिख जाएगा।
2.
गुजर जाते हैं
टूट के जुड़ने में समय तो लगता है!
गिर के संभलने में समय तो लगता है।
बिखरी चीजों को समेटना आसान नहीं होता,
फिर से वही दिखने में समय तो लगता है।
गुजर जाते हैं गुजर जाएंगे दुख,
उन्हें सुख में बदलने में समय तो लगता है।
3.
मैंने कब कहा?
जब तुम यह कहोगे
तो समय के हाथों से रेत से फिसलोगे।
अभी भी वक्त है मुकर मत जाना…
अपनी यह बात फिर ना दोहराना।
4.
मशरूम
सड़ी गली लकड़ी पर उपजे…
जीवन के कोमल छाते।
जहां नहीं था जीवन बाकी…
उम्मीदो ने धागे काते।
खंडहरों में उग रहे फूल कुछ रंगीन से…
बुझ गया हो गर मन तेरा…
जीना सीख ले मशरुम से।
5.
आंसुओं की चाशनी
आंसुओं की चाशनी में घुल गए शिकवे कई,
शिकायतों का पुलिंदा था स्याही से धुल गए गई।
बाकी कुछ जो बचे रहे गुत्थी की तरह उलझे रहे,
उनका भी सिरा मिलता गया आंसुओं ने इतना सहारा दिया।
सारे गिले-शिकवे जाते रहे
जलेबी बन बाहर आते रहे।
6.
मेरे कातिल
मेरे कातिल गर वापस आए,
तो आंखों में शिकायतें पढ़ लेना
होठों का फड़कना देख लेना।
धड़कनों की आवाजाही सुन लेना ,
मेरी रूह की तड़पन महसूस तो करना यदि तुम्हें इश्क है मुझसे।
7.
ममता
रेत, मिट्टी में सने हाथों से पसीना पोंछती
देखती है दूर से
मज़बूरी की धोती से बंधे बालक के पांव।
लोटता मिट्टी में
मचलकर पुकारता ‘मां’
विचलित हो दूर से पुचकारती
भूख और मज़बूरी से बंधी है उसकी ममता उसके पांव।
8.
स्वप्न की बुनाई बुन
पांव में बंधन, बेड़ी की जकड़न, वादों की अकड़न।
उंगलियों की सिहरन,
बादलों की गर्जन,
सूर्य रथ की घन-घन
पुकारती है लेखनी,
जरा कान लगा स्वर सुन।
चल पड़ी है लेके अनवरत यात्रा पर मुझको,
रास्ते है उजले, मंजिल की मुझे धुन।
कोटि सूर्य रश्मियां दे रही दिखाई सुन,
लेखनी कागज के संग स्वप्न की बुनाई बुन।
9.
एक कप चाय
एक कप चाय में घुला है
तेरा मेरा साथ भी।
होंठो से कप की छुअन
फिर तेरा अहसास भी।
10.
नई बात गढ़
खा पी कर निबटा दिए
आज मैंने सारे गम।
खीच ली है रोशनी
सूरज को एकटक
तक कर।
खुशियों की स्याही है भरी
मन को तू आज पढ़।
लेखनी खुशियों भरी
आज कुछ नई बात गढ़।
11.
जलाशय संवेदनाओं का
महर्षि दधीचि की
हड्डियों सा मजबूत नहीं ये दिल …
जिससे बनाए जा सके गांडीव, पिनाक, सारंग, वज्र…।
जिस की टंकार से फट पड़े बादल…
बह निकले लावा…
फूट पड़े जल की धाराएं …।
जलाशय है ये संवेदनाओ का…
बहता है जिससे सिर्फ प्रेम।