(1.)
पिता जो बिन जताए,
हर वादा निभाए।
सींचे अपनी तनहाइयों को,
जड़ बनकर।
फिर हम तुम ऊँचाइयाँ छुएँ,
और रहे खड़े तन तन कर।
करते है हर फर्ज़ पूरा,
समय से पहले।
वो अंदर से है मोम की तरह,
बाहर से चाहे कोई पत्थर कह ले।
बनकर कर स्तम्भ वो,
बचाते हैं हर मुश्किलों से हमको।
देते हैं भर भर के दुआएँ ,
तुम आसमां में बुलंद सितारों सा चमको।
पिता एक भरोसा एक विश्वास है,
जो हर मुसीबत में ढाल बनकर हमारे पास है।
होती है बेटी उसे जान से ज्यादा प्यारी,
दिल में रखकर पत्थर करता है उसे
अपने कलेजे से दूर,
होकर रस्मों से मजबूर।
इस विश्वास से कि उसे उसका जीवनसाथी उतना ही करेगा प्यार जितना वो करते हैं।
वो रोते हैं टूटकर कन्यादान करके,
मगर ये मानने से मुकरते हैं,
कि बेटी उनकी खुश रहेगी।
उसे जीवन की हर खुशी मिलेगी
जिंदगी बीत जाती है पिता का प्यार छुपाते छुपाते
पिता जैसी मोहब्बत किस रिश्ते में मिलेगी
बनाकर पिता को आदर्श वो
सींचे कि दो कुल को
बिना किसी भेदभाव के।
पिता तो दुनिया है
बिना उनके सारी दुनिया की खुशियाँ फ़ीकी हैं।
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(2.)
प्रेम में डूबी लड़कियॉं
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(2.)
प्रेम में डूबी लड़कियॉं
नहीं सुन सकती
अपने प्रेमी के लिए
कोई अपशब्द
प्रेम में डूबी लड़कियाँ
नहीं करती शृंगार,
और करती है तो सिर्फ
अपने प्रेमी के लिए
प्रेम में पड़ी लड़कियों
को नहीं होता है होश
वे बस बेसुध रहती हैं
अपने प्रेमी की याद में
प्रेम में पड़ी लड़कियाँ
जानती है इंतज़ार क्या है
और करती हैं सारा जीवन
बिना किसी शिकायत के
प्रेम में पड़ी लड़कियाँ
बहुत ही निश्छल होती हैं
वे भरी होती हैं पूरी तरह
सिर्फ प्रेम ही प्रेम से
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(3.)
हर वक़्त,
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(3.)
हर वक़्त,
हर जगह,
हर कहीं
तलाशती रहती हूँ तुम्हें,
तुम्हें देख लूँ तो बावरी हो जाती हूं।
तेरे बदन की खुशबू,
हर जगह महसूस करती हूँ।
तेरे जिस्म से महकती
वो इत्र की खुशबू,
जैसे मुझे मदहोश करती है,
और तेरी तरफ खिंचती है,
मुझसे कहती है कि आ
तुझे बाहों में भर लूँ।
मेरे माथे को प्यार से चूम कर
फिर हौले से पीछे से गले लगाना है।
तेरी यह बातें आज भी
अक्सर याद आती है मुझे।
दिन के हर एक लम्हें में,
हर पल में, तेरी तस्वीर को देखकर
बावरी सी तेरी तस्वीर से बातें करती हूँ।
और यह बावलापन एक अनजानी
सी ख़ुशी दे जाता है मुझे। हॉं सच ही तो है,
तेरे इश्क़ ने जीना सीखा दिया है मुझे।
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(4.)
मैं, वो और हमारी दो बेतुक बातें
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(4.)
मैं, वो और हमारी दो बेतुक बातें
मैं—कभी कभी उन सड़कों से भी
मैं लंबी बातें करना चाहती हूँ
जानना चाहती हूँ वो हर राज जो
वो अपने अंदर दफ़न किए बैठा है…
उसकी चुप्पी की आवाज़ बनना चाहती हूँ
वो—मैं सफर हूँ हर कोई मंज़िल पे ताक जमाए रखा है… मैंने हर मुसाफ़िर का दर्द तड़प छुपा के रखा है …
और हाँ मै भी ढूँढ रहा सफर को जीने वाला मुसाफ़िर.. उसका ताक लगाए रखा है
(मैं सड़क हूँ)
मैं—मंदिर में बंधे मन्नत के धागों से भी
मैं लंबी गुफ्तगू करना चाहती हूँ
जानना चाहती हूं वो हर कहानी
जो सालों से गिरफ़्त में है उस मंदिर के…
उन मन्नत और आस्थाओं की आवाज़ बनना चाहती हूँ
वो—मैं उम्मीद हूँ तमाम उलझनों को समेट रखा हैं हर ख्वाहिशों के सुलझने का आयाम रखा है
पर उन इरादों की दरकार है मुझे जो दूजे के लिए भी कुछ माँगे… वो अटूट गाँठ पे कसर लगा रखा है
(मैं मन्नत वाला धागा हूँ)
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(5.)
मैं भी तुम सब जैसी ही हूँ
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(5.)
मैं भी तुम सब जैसी ही हूँ
पहले खूबसूरत थी अब और
बहुत खूबसूरत हूँ क्योंकि
अब मुझे जब देखते हैं लोग
तो बिना कुछ कहे रोक नहीं पाते
वो खुद को देखकर मुझको सहम जाते हैं
उनके जज़्बात देखकर मेरी सूरत
सोचते हैं वो भी कि घर बैठी मेरी गुड़िया सुरक्षित
तो आज होगी कुछ देखकर मुड़ जाते,
कुछ देखते ही रह जाते हैं।
पर खुश हूँ मैं कि जहां में मुझसे कई मुस्कराते चेहरे मुझे जीना सिखाते हैं
कुछ मुझ जैसे मुझसे जीना सीख जाते हैं
मैंने भी सोचा था, कि ख़त्म हो गया सब
फ़िर सोचा गर मैं ही हार गई
तो क्या होगा उनका जो मुझ जैसी है,
उनके लिए ही सही पर मुझे जीना लड़ना है
हमें हमदर्दी नहीं चाहिए आपकी,
बस अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा दो
की एक दिन ऐसा भी आए
कि किसी की बेटी /बेटे पर
फिर ये तेज़ाब न फेका जाए