संजीत ‘समवेत’ की छह कविताएँ
1. विज्ञान की जड़ें उग आई है मेरे मस्तिष्क में, हर बात क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित तलाशता हूँ। चाहे फिर वो मोहब्ब्त ...
1. विज्ञान की जड़ें उग आई है मेरे मस्तिष्क में, हर बात क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित तलाशता हूँ। चाहे फिर वो मोहब्ब्त ...
पुण्यतिथि पर विशेष जिन दिनों हिन्दी नवजारण के अग्रदूत कहे जाने वाले भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र, गद्य खड़ी बोली में लिख ...
हिंदी के सांस्कृतिक समाजेतिहासिक आलोचक श्रीभगवान सिंह की सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'साहित्य की भारतीय परंपरा' लगभग सप्ताह दिन पहले सामयिक ...
पाण्डेय शशिभूषण ‘शीतांशु’ हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचकों ने पिछले पचास वर्षों में साहित्य की भावनक्षमता और पाठकीय संवेदनशीलता को कुंठित-अवरोधित ...
संवेदना बिछड़ा जब भी कोई अपना तो मैंने उसे किसी बीज की तरह सहेज लिया अपनी क्यारियों में जब भी ...
शहर काफी बड़ा था। हर बड़े शहर की तरह यहॉं भी हर ओर लोग ही लोग थे। सब एक दूसरे ...
साहित्य और समाज का एक-दूसरे के साथ अन्योन्याश्रय संबंध है। दोनों एक-दूसरे पर अवलंबित हैं, क्योंकि साहित्य पर समाज की ...
हम सबके पास एक खिड़की है... जिसके पास नहीं, उससे दरिद्र कोई नहीं खिड़की ईश्वर की ऊँगली है, जिसके इशारे ...
सुई थोड़ी मुश्किल से सज्ज होती हैं उँगलियाँ बटन वाली छोटी सुई पर चुभ जाए सहसा तो दर्द होगा रक्त ...
देवेंद्र दीपक के साहित्य में जीवन दर्शन की भरमार : प्रो. अरुण कुमार भगत • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ...
“आइडिया से परदे तक : कैसे सोचता है फ़िल्म का लेखक?” अपने पाठक को व्यवस्थित, पढ़ने-लिखने की दुनिया के प्रति ...
1). आँख️ 1. सिर्फ और सिर्फ देखने के लिए नहीं होती है आँख फिर भी देखो तो ऐसे जैसे देखता ...
1. किताबें बंद किताबें रहती हैं जितनी खामोश ये खुलकर करती हैं उतना ही ज्यादा शोर! ------------------ 2. पतंगें आकाश ...
पुरुष वेश्यावृत्ति और यौनाचार पर केन्द्रित विशिष्ट समकालीन उपन्यास ‘जी-मेल एक्सप्रेस’ हिंदी संसार में सुपरिचित कथाकार-कवयित्री अलका सिन्हा का हाल ...
1. आगमन जिस वक्त द्वार खटखटाया गया भीतर उसके एक मद्धिम दीया जल रहा था द्वार खोलकर देखा तो बाहर ...
1. जेएनयू हाल में किसी ने पूछा क्या आप जेएनयू से हैं? समझ नहीं आया क्या जवाब दूॅं जाने किसकी ...
1. राहतकाल गिलहरियाँ अपने कोटरों से निकलकर किटकिट करती अमरूद औ आम के पेड़ों पर धमाचौकड़ी मचाती औंचक हो खेल ...
1. ख़तरा उन्हें ख़तरा नहीं है भीड़ से वे जानते हैं भीड़ को हाँकना मनचाही दिशा में, वे जानते हैं ...
1. न जाने कितनी आत्मजनित भावनाओं का कौमार्य भंग हुआ जब स्वतंत्रता दी मैंने शब्दों को उन्हें छूने की केवल ...
1. वृक्ष का धैर्य टूटता है वृक्ष का धैर्य टूटता है, हवा गिद्ध की तरह झपटती है उस पर वह ...
(1.) प्रेम में अक़्सर छली जाती हैं लड़कियाँ (ग़ज़ल) प्रेम में अक़्सर ही तो छली जाती हैं लड़कियाँ, होती हैं ...
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