वो अकसर बड़े प्रेम से
सहेजता था अपने बोनज़ाई पौधे को
बहुत ख्याल था उसे
उसके रूप और बनावट का
हर कुछ दिन में काट दिया करता था
आगे बढ़ती शाखा को
जब मैंने कहा था बढ़ने दो इसे
क्यों काट रहे हो बढ़ती डाली को?
बड़े रौब से बताया था उसने
कि बोनज़ाई की खूबसूरती
तभी तक रह सकती है
जब उसे लगातार बढ़ने से रोक दिया जाए
न जाने क्यों उस दिन से
बोनज़ाई में उसकी बेटी ही
नज़र आती है मुझे।