कूड़ेदान संग्रहालय बन सकता है।
टूटे कप और गिलासों का,
नकली मोती की टूटी मालाओं का,
मलिन कपड़ों का,
अनेक त्यागी वस्तुओं का जो कभी
हमारी आवश्यकता की सुरक्षा की चादर थे
या स्वयं आवश्यकता थे
पर अब नहीं रहे।
शहर के छोरों पर जाकर दिखते हैं
काले टीले, जो लाल, सफ़ेद
और नीले रंगों से चितकबरे नज़र आते हैं।
और बताते हैं उस शहर का इतिहास
कि किस प्रकार हर घर, हर महल, हर झोपड़ी से
निकली है उनकी अंतिम यात्रा।
वह इतिहास बताते हैं
उन कमीज़ों की खोयी बटनों का,
आधी टूटी कंघियों, खिलौनों, चम्मचों का
औषधि और मदिरा की निष्काषित बोतलों का
जिनकी दुःख और पीड़ा हरने की शक्ति
क्षीण हो चुकी है।
वह इतिहास बताते हैं
बहे रक्त और मवाद का,
संक्रमित सुइयों और पट्टियों का,
मृत जीवों के शवों का,
बिन टांग की कुर्सियों और मेजों का,
टूटी खिड़कियों के कांच का,
और बचे-खुचे भोजन का
जिसमें फफूंद लग गई,
पर भूखों को नसीब न हुआ।
वह इतिहास बताते हैं
उन अखबारों के ढेरों का जो
स्वयं इतिहास बताने निकले
और अंततः मृदा में लीन हो गए।
नए दौर के उन विद्युत्-चलित उपकरणों का
जो कीबोर्ड की हर चोट को वर्षों लिपिबद्ध करने के पश्चात्
मृत माने जाने पर इस प्रकार त्यागे गए
कि वसुंधरा भी सैकड़ों वर्षों तक
उन्हें अपना नहीं पाएगी।
कूड़ेदान इतिहास बताते हैं
उन अस्त्रों का
जो कोप, क्रोध, कुंठा और द्वेष में
चले और चलाये गए,
शीघ्र ही न्याय और दंड के भय से
छुपाए अथवा फ़ेंक दिए गए।
इन मृत शय्याओं को पाटकर जब
खड़े होते हैं धनलोभियों के
गगनचुंबी भवन,
धंस जाती हैं इमारतें धरती के गर्भ में
जैसे विषाक्त और कलंकित था कभी
वसुधा की गोद में अभिशाप बन लेटा
कूड़ेदान, बिना टिकट का संग्रहालय।