(1.) प्रेम में अक़्सर छली जाती हैं लड़कियाँ (ग़ज़ल)
प्रेम में अक़्सर ही तो छली जाती हैं लड़कियाँ,
होती हैं पवित्र पर बुरी बना दी जाती हैं लड़कियाँ।
बुरी मानसिकता रखकर भी लड़के होते हैं अच्छे,
सबके आँखों में चुभती हैं काँटों सी ये लड़कियाँ।
ग़लती इतनी कि यक़ीन कर लेती हैं किसी पर भी सहज ही,
बड़ी मासूम सी बड़ी भोली होती हैं ये लड़कियाँ।
ज़ाहिर नहीं कर पाती किसी से ये अपने दिल की बातें अक़्सर,
अकेले ही तो घुट-घुटकर जीती हैं ये लड़कियाँ।
चाहे कितना भी लताड़े ये समाज इनको,
बढ़ती जाती मज़बूत होकर जीवन राह ये लड़कियाँ।
प्रेम ना मिला इनको तो बन जाती हैं ख़ुद ही ये प्रेम का सागर,
कठोर चट्टान सी दिखती अंतस् से मोम सी होती हैं ये लड़कियाँ।
(2.) ईजा (माँ) (ग़ज़ल)
थोड़ा-थोड़ा ईजा ने घटा दिया हमारे लिए स्वयं को,
थोड़ा-थोड़ा जोड़ दिया ईजा ने साँसों से हम को।
रच दी नई सृष्टि ईजा ने अपने ही सुन्दर तन से,
हममें प्राण भर दिए उसने छोड़ सम और विषम को।
करती पोषण जग का ईजा पिला अपना जीवन अमृत,
ईजा ईश्वर जग मंदिर की करती दूर सघन तम को।
खिलाती हमको भरपेट ईजा सोती ख़ुद भूखी होकर,
बचाती जलाते घाम से ईजा ओढ़ाकर आँचल हमको।
पीठ पर बांधे करती काम झेलती बरसा-तूफान,
करो वक़्त रहते इसकी क़द्र छोड़ अपने अहम को।
हमें स्वस्थ ख़ुश देखना ही है जीवन ध्येय इसका,
हमारी ख़ुशी में ईजा भूल जाती अपने गहरे ज़ख्म को।
क्या लिखूं ईजा तुझ पर हर शब्द अदना हो जाता है,
तू गीता तू कुरान है तू ही बाइबिल का वरदान हमको।
(3.) सुबह का त्योहार
किरणों की गाड़ी पर सूरज होकर सवार,
जागो नन्हे हो गया अब सुबह का त्योहार।
चीं चीं करती उठ गई प्यारे चिड़िया रानी देखो,
फूलों में रंग भरती देखो तितलियाँ हज़ार।
बन्दर मामा उछल-उछल कर डांस कर रहे हैं,
गय्या मा मा करती कुलाँच भरती बार-बार।
कू-कू करती कोयल प्यारे गीत गा रही बागों में,
झूम रहा ख़ुशी से देख प्यारे ये सारा संसार।
कालू बिल्ला म्याऊँ-म्याऊँ का हॉर्न बजा रहा,
खटिया के नीचे से टॉमी सीटी रहा है मार।
चींटियों की बारात में ढोल बजा रहा भालू,
हाथी दादा नाच नाचकर बजा रहे हैं गिटार।
मीठे-मीठे आम खा रहा प्यारा मिट्ठू देखो,
दीदी ने तेरी लल्ला लगाया देख खिलौनों का बाज़ार।
किरणों की गाड़ी पर सूरज होकर सवार,
जागो नन्हे हो गया अब सुबह का त्योहार।
(4.) मैं हूँ आज की नारी
मैं हूँ आज की नारी,
अबला नहीं, हूँ चिंगारी।
मेरी चुप्पी की कमज़ोरी न समझो,
मुझे अपने ही समान समझो।
जो मैं बोलूँ तो अर्श-फर्श पर आ जाए,
परिवार की माला टूटकर बिखर जाए।
पर मेरा स्वभाव नहीं है तोड़ना,
ख़ुद टूटकर अखिल विश्व जोड़ना।
तकलीफें मैं सहती हूँ रोज़,
फ़िर भी बढ़ती हूँ जीवन पथ पर रोज़।
मुझे गर्व है मैं नारी हूँ,
हे परमात्मा तुम्हारी आभारी हूँ।
मैं सबसे सुंदर कृति तुम्हारी,
मैं ही लक्ष्मी-काली अवतारी हूँ।
(5.) सुनहरा बचपन
कितना निश्छल कितना निर्मल है ये प्यारा बचपन,
सारी सीमाओं से परे करता ये एक घर-आँगन।
वो अड्डू-पिड्डू, गुल्ली- डंडा औ छुप्पनछुपाई,
अथक दौड़ता गुड्डे-गुड़ियों वाला प्यारा बचपन।
वो बाबा की डाँटें अम्मा की संटी की चटाक,
वो मित्रों की टोली में जाना सबसे बचाकर आँख,
बिखरे भूरे बाल हमारे वो धूल से भरा तन,
कितना सुन्दर था ना यारों वो सुनहरा सा बचपन।
वो रंग-बिरंगी मिठाइयाँ वो धूम मेलों की ,
वो बड़ी-छोटी पिचकारियाँ वो धूम खेलों की।
वो खेतों से सेब-अमियों औ ककड़ियों को चुराना,
यारों था कितना आज़ाद पंछी सा वो न्यारा बचपन।
वो शक्तिमान, जूनियर-जी और प्यारा नन्दू अपना,
घण्टों चौपाल जमाकर टीवी से चिपकना।
वो इतवार को पूरे दिन घर से ग़ायब रहते हम,
लौटा दे कोई हमको वो नटखट सुनहरा बचपन।