सिर्फ प्रेम कहानियाँ और कविताएँ
पढ़ने की जरूरत नहीं है।
मैंने देखा है…
माँ को चाय में चीनी कम डालते हुए
और पापा को उनकी चाय की
तारीफ़ करते हुए…!!
प्रेम को समझने के लिए,
सिर्फ लिखा जाना ज़रूरी नहीं है
कोई प्रेम ग्रन्थ।
मैंने देखा है…
काकी को कपड़ों और ज़िन्दगी की
तहों को समेटते हुए
और काका को बची हुई कड़ी में छौंक लगाते हुए…!!
प्रेम को समझने के लिए,
सिर्फ तस्वीरें या प्रेम पत्र संभालना
ज़रूरी नहीं हैं।
मैंने देखा है…
फ़ूफ़ी को हर शाम छज्जे से
बाट निहारते हुए
और फ़ूफा को दिनभर की मशक्क़त के बाद भी मुसकराते हुए।
प्रेम को समझने के लिए,
सिर्फ ज़रूरी नहीं है मनाना कोई
प्रेम दिवस।
मैंने देखा है…
जीजी को हरी काँच की चूड़ियों के साथ खनकते हुए
और जीजा को सुनहरे पंखों की उड़ान देते हुए।
प्रेम को समझने के लिए,
सिर्फ सात फेरों में बँध जाना जरूरी नहीं है।
मैंने देखा है…
एक दोस्त को दूसरे दोस्त के मौन को शब्दों में पिरोते हुए
और दूसरे दोस्त को उन शब्दों का भाव सँजोते हुए।
प्रेम को समझने के लिए
प्रेम में कविताएँ लिखना जरूरी नहीं है।
बल्कि
कविताओं में प्रेम होना जरूरी है।