राहुल राजेश हिंदी के चर्चित कवि हैं। अधिकांशत: ये छोटी कविताएँ लिखते हैं। कम शब्दों में अधिक बात कहने की कला में माहिर हैं। कविता की भाषा सहज, सरल एवं सुबोध होती है। हम यहां इनकी सत्रह कविताएँ प्रकाशित कर रहे हैं। इन्हें पढ़ने के बाद यह स्पष्ट है कि इनकी कविताओं में सच कहने का साहस, सामाजिक तथा राजनीतिक तत्त्वों की प्रधानता, केवल जन तक सीमित नहीं अपितु पशु-पक्षी, वनस्पति आदि से सरोकार तथा एकांगी नहीं अपितु समग्र विचार परिलक्षित होता है और यही इन्हें विशिष्ट बनाता है।
तख्तापलट
वॉश बेसिन में
साबुन की टिकिये की जगह
लिक्विड हैंडवाश ने कब ले ली
पता ही नहीं चला
किफायती हो न हो
सुविधाजनक बहुत है
और बच्चों को तो खूब पसंद है
सत्तर साल के बूढ़े पिता ने भी कहा
यही ठीक है
अब लाख चाहे
साबुन की टिकिया
अपनी जगह कभी नहीं ले पाएगी ।
***
हत्यारे
हत्यारे नकाबपोश नहीं थे
फिर भी किसी ने उन्हें नहीं पहचाना
मरने से पहले उस आदमी ने
हत्यारों से ही नहीं, खिड़कियों से झाँकते
लोगों से भी गुहार लगाई थी
पुलिस हैरान थी
अनिंद्रा के मारे इस शहर में
कल रात लोग कितनी गहरी नींद में थे!
***
गिनती की रोटी
आप कितनी रोटी लेंगे?
और आप? और आप?
पूछा गृहिणी ने
मैंने कहा— चार, और सोचा
अगर पाँचवे की दरकार हुई तो
या एक बच गई तो क्या होगा?
पहले बासी रोटी नाश्ते में चल जाती थी
गाय, बकरी, कौए को भी मिल जाती थी
और सबसे बड़ी बात कि तब
एक रोटी ज्यादा खाने से माँ खुश होती थी
अब तो रसोई नहीं, किचन है
और ब्रेड-बटर-टोस्ट का फैशन है!
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आश्चर्य
रात का समय था
दो लोग
कॉलोनी की चहारदीवारी के उस पार
दूर सड़क पर यूँ ही बातें कर रहे थे
आवाजें इतनी साफ आ रही थीं
और वे इतने पास लग रहे थे
मानो ठीक हमारी बिल्डिंग के नीचे
दीवार से टिक कर ही बतिया रहे हों
आश्चर्य!
उस औरत की चीख
फिर भी किसी ने नहीं सुनी!
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जड़ें
लोकतंत्र के इतिहास में
ऐसा पहली बार हुआ कि
जड़ें काटने की जितनी
कोशिशें हुईं
जड़ें होती गईं
उतनी ही मजबूत!
इससे साफ पता चलता है
कि सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने के
सारे औजार जड़ हो चुके हैं
और औजार बनाने वाले
कारखाने भी
कब के सड़ चुके हैं!!
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असभ्य
रोटी, कपड़ा और मकान की
जिम्मेदारी सरकार पर
सड़क, बिजली, पानी की
जिम्मेदारी सरकार पर
साफ-सफाई, रंगाई-पुताई की
जिम्मेदारी सरकार पर
पढ़ाई-लिखाई, सिलाई-कढ़ाई की
जिम्मेदारी सरकार पर
नियम-कायदे, कानून-व्यवस्था की
जिम्मेदारी सरकार पर
हत्या, लूटपाट, बलात्कार रोकने की
जिम्मेदारी सरकार पर
और तो और, समाज को
सभ्य बनाने की जिम्मेदारी भी सरकार पर!
जिस देश में सरकार पर
इतनी ज़िम्मेदारियाँ हों
उस देश में समाज
असभ्य नहीं होगा तो और क्या होगा?
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असहमति
सबसे पहले जो बात कहनी चाहिए थी
उसने सबसे आखिर में कही
सबसे पहले उसने कसीदे काढ़े
चरणवंदन किया, क्षमायाचना की
असहमति जताने की यह भूमिका
इतनी लंबी थी कि उसके सामने
असहमति बहुत बौनी लगी
और इससे भी ज्यादा कि
बौद्धिक कहलाने की यह विधा
बहुत घिनौनी लगी!
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अनीता महतो
वह साँवली थीं
पर चेहरे पे चमक थी
मुझे तो वो
स्मिता पाटिल की माफिक लगती थीं
हम बारहवीं में थे
और वो हमें हिंदी पढ़ाती थीं
चूँकि हम बड़े हो चुके थे
और उनकी भी उमर ज्यादा नहीं थी
हम खुलकर बतियाते थे
अक्सर वो कहतीं
मैं भी वर्मा-शर्मा, पांडे-शांडे, सिंह-विंह होती
तो आज स्कूल में नहीं
किसी कॉलेज-यूनिवर्सिटी में पढ़ा रही होती!
एक चंद्रभूषण उर्फ सी बी सिंह थे
कहते थे, यह उनकी उन्नीसवीं नौकरी है!
वह भी क्या गजब की हिंदी पढ़ाते थे
मानो फिजिक्स पढ़ा रहे हों!
दोनों में पटती नहीं थी
वो अक्सर तंज कसतीं
ये यहाँ क्यों झक मार रहा है?
इसके सिंह होने पर
मुझे पूरा शक है!
***
फिर भी
उन्हें अपनी जड़ों पर भरोसा है
और अपनी परवरिश पर भी
वे हमलों से विचलित नहीं होते
उनकी आस्था भी आहत नहीं होती
उनको बर्दाश्त करना आता है
नजरअंदाज करना भी आता है
वे नजरअंदाज होना भी जानते हैं
वे ये भी जानते हैं कि
जहाँ सेकुलरिज्म का मुलम्मा
औसत को भी लोकप्रिय बना देता है
वहाँ अपने बारे में जरा भी फिक्र
उन्हें बदनाम कर देगा
फिर भी वे खुद को हिंदू कहते हैं
तो किसी गुमान में नहीं
बल्कि बस इसी फिक्र में कि
वे जाएँ तो जाएँ कहाँ
इत्ती बड़ी दुनिया में उनके लिए
कोई और देश भी तो नहीं!
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दुष्कर्म
इस देश में
किसी औरत की अस्मिता की
अहमियत क्या बस इतनी ही है?
दो दिन की राजनीति?
और उसकी पहचान
बस दलित, हिंदू या मुसलमान?
मेरी नजर में
इससे जघन्य दुष्कर्म
और कोई नहीं…
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जनादेश
हाथ को भी वोट दिया है
हाथी को भी वोट दिया है
हँसिये को भी वोट दिया है
हथौड़े को भी वोट दिया है
अब ये न पूछिए कि इस बार
हमने पाला क्यों बदल लिया है
जरा भी ईमान बचा हो
तो झाँक के देखिए
आपके ही कीचड़ में
कमल खिला है!
***
डर
हत्याएँ
सिर्फ़ सत्ता हासिल करने के लिए ही नहीं,
सत्ता को कटघरे में खड़ा करने के लिए भी
की जाती हैं
दंगे सिर्फ़ कुर्सी पाने के लिए ही नहीं,
कुर्सी जमाने के लिए भी कराये जाते हैं!
हाल में हुई घटनाएँ
बरबस इसी ओर इशारा करती हैं
जिसे विचारधारा
कबूल करने से डरती है!!
***
यशघात
जब-जब
ज्योति कुमारी को
देखता हूँ खबरों में
सुर्ख़ियाँ बनते
बुधिया याद आ जाता है!
ओह! सारे कीर्तिमान तोड़ देने वाला
वह बाल धावक!
ओ खबरनवीसो!
बुधिया की कोई
खबर??
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नीयत
इंसाफ मकसद हो
तो कुछ कहूँ
सिर्फ हंगामा खड़ा करना
मेरा मकसद नहीं
किसी की मौत को
अपनी मंजिल की ईंट बनाना
मुझे नहीं आता।
***
दौर
मुझे सबसे ज्यादा लोग टोकते हैं
मुझे सबसे ज्यादा लोग रोकते हैं
मुझे सबसे ज्यादा लोग कोसते हैं
मुझे सबसे कम लोग पहचानते हैं
मुझे सबसे कम लोग जानते हैं
मुझे सबसे कम लोग मानते हैं
कवि होने में कोई बुराई नहीं है
आदमी होना कितना बुरा है
इस दौर में!
***
आश्वस्ति
कुछ चीजें मुझे आज भी
सम्मोहित करती हैं
जैसे
झमाझम बारिश
धड़धड़ाती रेल
चिड़ियों की चहचहाहट
खेतों की खुशबू
पीला चाँद
हरी घास
और प्यार।
***
गुजरना
आज कितना कुछ
करने की सोच रखा था
पर किया क्या?
और पूरा दिन गुजर गया!
ऐसे ही जीवन गुजर जाता है…
***