1. जेएनयू
हाल में किसी ने पूछा
क्या आप जेएनयू से हैं?
समझ नहीं आया
क्या जवाब दूॅं
जाने किसकी नजर लगी
बार-बार लगातार
कब, क्यूँ और कैसे?
महज इत्तेफाक या साजिशन?
जो कभी होता था
जिक्र बड़े फख्र से
देखती हैं निगाहें
अब तो शक से
जैसे जेएनयू से
होना क्या हुआ
हम एक तमाशा हो गए
जी, मैं जेएनयू से हूँ
और सिर्फ मैं ही नहीं
हममें से कई
शायद, आपमें से भी कई
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2. विकास
जो होगा विकास
तो सूखेंगी नदियाँ
जो होगा विकास
गहरे होंगे खदान
हर तरफ होंगे
केवल मकान और दुकान
पहले पानी हुआ दूषित
तो आया आरओ मशीन
जो हुई हवा गन्दी
साथ लाया एयर प्यूरीफायर
अब है आया कोरोना
बाजार में भर गया सैनीटायजर
तो हो रहा है विकास
हमारा, आपका और देश का
क्या है ये विकास?
भारत बने अमेरिका
पटना बने दिल्ली
हम और आप बने
चूहा और बिल्ली.
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3. रोजगार
जब छोटे थे,
तब तमन्ना थी
जल्दी से बड़े होने की.
जब हुए बड़े,
तब हुई तमन्ना,
जल्दी मिले रोजगार.
छूटा गाँव, हम गए शहर
शहर है बन रहे अब महानगर
ये चकाचौंध चारों तरफ़
थी खींच रही अपनी तरफ
कुछ पाने की तमन्ना में
है न जाने क्या-क्या छूटा
आसपास में देखा तो
पाया कई घर है टूटा
जो पाया रोजगार
तो छूटा घर-बार
जल्दी ही लगने लगा
सब कुछ है बेकार.
मेरी कविता ‘विकास’ जेसिता केरकेट्टा और सोपान जोशी को समर्पित है.