1) सिंड्रेला
खो चुका है चमचमाता जूता,
टूट चुका है अर्द्धरात्रि का
जगमगाता दिवा स्वप्न,
इच्छाओं की लड़ियाँ टूटी बिखरी हैं।
राजकुमार खो गया भीड़ में कहीं।
तिलिस्मी अपेक्षा डस गयी है।
घर भी नज़र आता नहीं कहीं अब,
बदहवास सड़क पर,
खड़ी है सिंड्रैला।
कहानी जैसे चमत्कार का
इंतजार नहीं करती सिंड्रैला।
नंगे पाँव चलकर
छालों को छलकर
श्रम भभूति मलकर
नयी एक कहानी लिखेगी सिंड्रैला…
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2) कठपुतलियाँ
बचपन में मुझे बहुत
लुभाती थीं कठपुतलियाँ।
गोटेदार लँहगे,
जर्दोशी वाले दुपट्टे,
रंग-बिरंगी जूतियाँ,
कमर पर झूलते परांदे,
आँख भर काजल,
होठों की लाली…
राजा की प्यारी रानी,
गरीब लड़की अमीर शहज़ादा,
चाँद के गाँव घूमने वाली ज़हीन लड़की,
अपने भरतार को पाने के लिये
महीनों उपासी रहने वाली प्रेमिका,
जंगल में भटकते राजा को
सूखी रोटी खिलाने वाली बुढ़िया,
कहानियों का अनमोल ख़जाना
सुना देती नाचते-गाते, हँसते -रोते कठपुतलियाँ…
बिल्कुल इन जैसी होने को
बहुत ललचाती थीं कठपुतलियाँ…
सोचती हूँ जो अब तो लगता है
कितनी बड़ी कीमत इन सब की
चुकाती थीं वो कठपुतलियाँ…
किसी और के हाथ डोर
इशारे पर सिर्फ नाचती
हँसती-गाती, उठती-बैठती हैं ये
रंग-बिरंगी, सजी-धजी कठपुतलियाँ…
इसलिए ही
ओठों से हँसती
आँखों से गुमसुम
उदास-उदास सी दिखती थीं कठपुतलियाँ…
आँखों के सामने अब तो
न जाने कितनी जीती-जागती रहती कठपुतलियाँ…
लुभाती नहीं अब
मन दुखाती हैं बस ये कठपुतलियाँ…
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3) प्रेम
1) तिलिस्म होता है
हाथ से छू लेने के बाद
टूट जाता है…
2) राजकुमारी की जान
दूर बसे तोते में
किस्सा पुराना है
और नया ये ज़माना है…
3) मंदिर से उठाये भभूत की तरह
माथे पर लगा लो
या जीभ पर रख लो
श्रद्धा हो तो स्वाद
आत्मा तक पहुँचता ही है…
4) मिलने से ज्यादा
खोने पर…उसके होने का
विश्वास बना रहता है…
5) सोने के कंगन के बीच
लोहे का कड़ा बनकर भी
भारी भरकम नेकलेस के साथ
काले धागे की गाँठों के बीच भी
साँस लेता है…उम्र भर