एक पतली-दुबली, लंबी, आकर्षक से चेहरे वाली, मुस्कान से भरी लड़की ‘ऐमी’, मेरे दफ्तर के बहुत अच्छे पद पर नई-नई आई थी। सभी उसको पाकर खुश थे। किसी दूसरे शहर से आई थी और सभी से जान-पहचान बढ़ाने में लगी थी। समय से आती थी, समय से चली जाती थी, उसे पता नहीं था कि उसके पद वाले लोग समय पर आते ज़रूर हैं पर समय से जा नहीं पाते। जितना बड़ा पद, उतनी ही घर से दूरी। घर से तो वह दूर थी ही। इस शहर से आठ-नौ घण्टे की ड्राइव पर था उसका अपना घर, पति और उनके परिवार के सदस्य दो पालतू कुत्ते। नए शहर में वह अपने शहर को बहुत याद करती थी। ऑफिस के पास घर बहुत मंहगे थे इसलिए ऑफिस से दूर ऐसा घर देख रही थी जहाँ उसके पति को शिफ्ट होने में कोई तकलीफ न हो।
एक अजब सी उमंग और ताज़गी दिखती थी उसके चेहरे पर। उससे पहले, उसके पद पर रहने वाले सभी उससे उम्र में कम से कम पंद्रह-बीस साल बड़े थे। इसीलिए अपने आप को शायद बड़ा दिखाने के लिए बूढ़ी औरतों जैसे कपड़े पहनती थी। उसका और मेरा काम एक दूसरे से कुछ खास नहीं था इसीलिए हमारी जान-पहचान बस ‘हाय हैलो’ तक ही सीमित थी। उसके जॉइन करने के कुछ ही दिन बाद मैं छुट्टी पर चली गई। जब वापिस आई तो पता चला कि ऐमी आजकल उदास है। किसी ने फुसफुसा कर कहा कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है। किसी और ने जानकारी दी कि उसकी शादी को सात साल हो गए थे। किसी और ने यह भी बताया कि जब मैं छुट्टी पर गई थी तो ऐमी का पति एक बार ऑफिस आया था और उसने उत्साह से सभी को बताया था कि अब दोनों हमेशा के लिए इसी शहर में रहेंगे।
यह सब जानकार मुझे अफसोस हुआ पर उसके पास जाकर यह अफसोस जताती, ऐसा रिश्ता कहाँ था उससे? एक दिन कॉरिडोर में उसे किसी से बात करते सुना। वह ज़्यादा नहीं बोल रही थी, दूसरी महिला उसे सांत्वना दे रही थी। अब वो ऑफिस में ज़्यादा देर तक रुकने लगी थी। पता नहीं उसे अपनी ज़िम्मेदारी पता चल गई थी या फिर घर जाने की चाह मिट गई थी। एक दिन मेरे ही कमरे में बैठने वाली मेरी बॉस से कुछ सलाह मांगने आई। बहुत भरी हुई थी। बहुत देर तक काम के सिलसिले में अपनी उलझनें और कुछ तकलीफों के बारे में बात करती रही। जाते वक्त मुझसे और मेरी सहकर्मी से माफी मांगी कि इतनी देर हमें डिस्टर्ब किया। उसके जाने के बाद पता चला कि इसी साल कुछ महीने पहले उसके पिताजी का देहांत हो गया था। साथ ही यह भी पता चला कि उसका पति बहुत समय से अलग अलग लड़कियों के साथ डेट कर रहा था और अब उसे कोई ऐसी लड़की मिल गई है जिसके साथ वह रहना चाहता है। इस सबकी ऐमी को कभी भनक भी नहीं हुई थी।
एक दिन मैं ऑफिस में ही कुछ सहेलियों के साथ खड़ी बतिया रही थी कि वह भी आ गई। ऐमी से एक लड़की ने मज़ाक में पूछा कि वह बूढ़ी औरतों की तरह कपड़े क्यों पहनती है? तब पता चला कि वह जिस शहर से आई है वहाँ इतनी सर्दी नहीं पड़ती और उसके पास इस मौसम के लायक कपड़े ही नहीं हैं। फिर घर बदलने का खर्चा, डाइवोर्स का किस्सा, इसलिए उसके पास न तो चाह है न समय है और न ही धन। सुन कर अजीब सा लगा। माहौल गंभीर न हो इसलिए वह कुछ मज़ाक सा करके अपने पर लोगों को हंसा कर वहाँ से चली गई।
ऐमी इस शहर में अगस्त-सितम्बर में आई थी। अब दिसम्बर आ गया था। दिसम्बर में ऑफिस बहुत वीरान हो जाते हैं। खासकर जहाँ मैं काम करती थी, एक लैंगुएज सैंटर, जहाँ अधिकांश अध्यापक छुट्टी पर अपने अपने देश चले जाते हैं। विदेशी छात्र भी इस मौसम में कम ही आते हैं। एक क्रिसमिस पार्टी होती है जो थोड़ा उत्साह जगाती है। पार्टी दिसम्बर के आरम्भ में ही हो जाती है। ऐमी ने पार्टी में बहुत आकर्षक ड्रेस पहनी जिसमें वह बहुत सुंदर लग रही थी। जब मैंने उसे कहा कि वह बहुत अच्छी लग रही है तो तुरंत हंसते हुए बाली, “क्या तुम्हारे पति का कोई भाई है? मैं अकेली हूँ।” थोड़ा सा हंस कर वहाँ से चली गई। मैं भी हंस दी पर सोचती रही कि उसे ऐसा कहते हुए कैसा लग रहा होगा!
क्रिसमस और नए साल के एक हफ्ते बाद तक मुझे घर से काम करने की अनुमति मिल गई। मैं सर्दी में इतने दिन घर रहने के ख्याल से बहुत खुश थी। हर कोई एक दूसरे से क्रिसमस के प्लैन पूछ रहा था। ऑफिस की किचन में मैं अकेली बैठी चाय पी रही थी कि ऐमी भी आ गई। औपचारिक हाय-हैलो के बाद मैंने उसे क्रिसमस और नए साल की बधाई दी और उसे बताया कि अब नए साल में ही मिलना होगा। उसने मुझसे पूछा कि मैं क्रिसमस और नए साल पर क्या करूँगी। मैंने संक्षिप्त उत्तर दिया और औपचारिकतावश वही प्रश्न उससे कर दिया। मैंने उम्मीद नहीं की थी कि वह मुझसे इतनी बात करेगी। उसने बताया कि, उसकी माँ यहाँ आएंगी। पिता की मृत्यु के बाद वो भी अकेली हैं और ऐमी भी पति से अलग हो ही चुकी है।
उसे फरक नहीं पड़ रहा था कि वह किससे बात कर रही है, पर शायद वह बोल लेना चाहती थी। उसने कुछ ऐसे अपनी बात रखी, “मैंने ऑफिस के पास एक नया अपार्टमेंट ले लिया है। अब पति ने तो आना नहीं है तो दूर बड़े घर में रहने का क्या फायदा! जीवन इतना बदल जाएगा कभी सोचा नहीं था। कभी कभी वीकेंड पर खिड़की के पास जाकर बैठती हूँ तो सोचती हूँ कि मैं कौन हूँ? शहर नया है, घर नया है, मौसम नया है। सात साल तक जिसके साथ रह रही थी वह है ही नहीं! कितनी आदत पड़ जाती है ना किसी के साथ रहने की। पिता भी इसी साल चल बसे इसलिए क्रिसमस का कोई उत्साह तो है नहीं। शायद माँ के साथ सर्दियों के कुछ कपड़े खरीद लूँ। ऑफिस में भी बहुत व्यस्त हूँ। मेरे लिए व्यस्त रहना ही अच्छा है।”
फिर एक विराम देकर कुछ अजीब तरह मुस्कुराते हुए बोली, “कितनी अजीब बात है ना मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी शादी ठीक नहीं चल रही!”
मैं तो बस उसकी बात सुनती रही। मन हुआ कि उसे गले लगा लूँ या फिर कहूँ कि वो मेरे साथ चले, हम साथ में शॉपिंग करेंगे। बहुत मन हुआ उससे यह कहने का कि वह खुद को अकेला न समझे, या फिर यह कि वह मुझे कभी भी फोन कर लिया करे, पर कुछ भी कहा नहीं गया। बड़े होते होते कितनी औपचारिकतायें जो सीख लेते हैं हम। अपनी व्यस्ततायें भी हर पल याद रहती हैं। उस समय मैं उसके लिए बहुत कुछ करना चाहती थी। घर जाकर भी दो तीन दिन तक वह मेरे दिमाग में घूमती रही। फिर बस क्रिसमस आ गया, सभी अपने परिवारों के साथ हुए, हम भी हुए, दोस्तों के साथ नए साल का जश्न मनाया।
नए साल में जब ऑफिस गई तो सब कुछ पुराने साल जैसा ही था बस ऐमी के कपड़े नए थे और वह पहले से बहुत ज़्यादा आकर्षक लगने लगी थी। एक दिन इतनी अच्छी लग रही थी कि मैं खासतौर पर उसके कमरे में यह कहने गई। ऐमी को अपनी तारीफ सुनकर अच्छा लगा और एक बार फिर उसने हंसते हुए कहा कि यदि मेरे पति का कोई भाई है तो मैं उसे बता दूँ क्योंकि अब वह अकेली है। पर फिर एकदम से उसकी आँखों में उदासी छा गई और उसने कहा, “तुम्हें सच में लगता है मैं अच्छी लग रही हूँ, अच्छा है। मैं कोशिश कर रही हूँ, पर उतना आसान नहीं है।”
वातावरण को हल्का करने के लिए उसने ज़ोर से कहा, “मेरे लिए लड़के तलाशना शुरू कर दो!” मैंने भी हंसते हुए कहा कि ज़रूर देखूँगी। बहुत देर तक उसकी उदास आँखें मुझे दिखती रहीं। मैं सोचती रही कि ऐमी के लिए कितना मुश्किल होता होगा अपने दु:ख को हंसी में उड़ाना, कैसे सात साल तक साथ रहता हुआ व्यक्ति एकदम अंजान हो जाता है! कितनी आहत होती होगी वो जब-जब अपना उपहास उड़ाती होगी! क्या केवल नए कपड़े उसे सब भुला देने में मदद करेंगे? क्या नौकरी की अफरा-तफरी उसका अकेलापन दूर कर सकेगी? क्या सभी से हंस कर बात करने से वह अपना दु:ख भूल पाएगी! मैंने यह भी सुना कि उसने डांस क्लास जॉइन कर ली है। क्या उसे डांस का सच में शौक रहा होगा या बस अपने को कहीं उलझाए रखने के लिए वह ऐसा करती होगी!
अब वो यूँ ही कभी-कभी मेरे कमरे में आकर झांक लिया करती थी और मेरा हाल चाल लेती थी। मुझे ऐसा लगता था कि वह मेरा हाल चाल लेने नहीं आती पर शायद कभी-कभी बस मुझे अपने नए कपड़े दिखाने आती थी या फिर कुछ मन हल्का करने। उसका ओहदा मुझसे बड़ा था इसलिए मैं थोड़ी दूरी बनाए रखती थी। वैसे मुझे उसे रिपोर्ट नहीं करना होता था पर फिर भी। वह भी मेरी हिचक को समझती थी इसीलिए तभी मेरे पास आकर बैठती जब मैं अकेली होती थी। मैं बहुत बार चाह कर भी अपने मन की बात उससे नहीं कर पाती क्योंकि मैं यह नहीं चाहती थी कि उसे कहीं भी मेरी बातों में दया की महक आए।
कैसे हो जाते हैं न हम! किसी का अच्छा सोचते हुए भी इतना घबराने लगते हैं। शब्दों में भावों को प्रकट करने से डरते रहते हैं। मेरा कुछ चार-पाँच महीने का ही परिचय था और तब भी मैं उसके बारे में इतना सोचती थी। क्या उसके पति ने एक बार भी नहीं सोचा होगा! सात साल मायने रखते हैं किसी की भी ज़िंदगी में। ये स्त्री-पुरुष का प्रेम सबसे अलग है। बहुत से समाज में एक बार शादी के बंधन में बंधने के बाद, छोड़ने का विकल्प नहीं होता, अगर कोई चाहे भी तो समाज उसे जीने नहीं देता। यहाँ का समाज मुक्त है। एक तरह से अच्छा भी है, कम से कम झूठे रिश्ते में बंधना तो नहीं पड़ता। पर कई बार लगता है कि क्या ऐमी के लिए वही अच्छा होता कि उसका पति उसके अन्य प्रेम संबंधों के बारे में कुछ न बताता! कम से कम वह अपनी दुनिया में खुश तो थी। पता नहीं सब कुछ जान लेना अच्छा होता है या कई बार अंजान बने रहना ही बेहतर होता है?
इस समाज में अपने मुताबिक जीने की छूट है इसीलिए बहुत से लोग यहाँ से वापिस नहीं जाना चाहते। समाज के बंधन से भाग कर आए हुए लोगों की संख्या सबसे अधिक है यहाँ। यहाँ आस-पास देखती हूँ तो कितने ही रिश्ते बिखरे पड़े नज़र आते हैं। एक और औरत है मेरे ऑफिस में जिसकी तीन बेटियाँ हैं। पति से तलाक हुए बहुत वर्ष हुए और हाल ही में बॉयफ्रेंड भी अलग हो गया। एक दिन बाथरूम में ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी। बाहर निकली तो आँख बचाकर चली गई। एक बल्गेरीयन टीचर है, एक दिन ऑफिस के बाहर कुछ खोई सी खड़ी थी। मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ तो पता चला कि उसका जन्मदिन था उस दिन और उसके साथ मनाने वाला कोई नहीं था। इस देश में बिलकुल अकेली रह रही है।
अगर देखने निकलो तो अपने आस पास कितनी कहानियाँ, कितनी ज़िन्दगियाँ बिखरी पड़ी मिलेंगी। रिश्तों का बिखरना सबसे ज़्यादा दु:ख देता है। न जाने जब बिखरना होता है तो रिश्ता बनता ही क्यों है? हममें रिश्ते निभाने की क्षमता भी थोड़ी कम होती जा रही है। शायद इसीलिए ऐमी के लिए बहुत कुछ करने की चाह के बाद भी कुछ कर नहीं पाई। अपने को हर दु:ख से दूर रखने की कोशिश में, हम सबसे अलग थलग रहते हैं और फिर अकेलेपन को अपने दु:खी रहने का कारण बना लेते हैं। यदि मैं किसी के साथ दो आँसू बहा लूँगी तो क्या कमज़ोर हो जाऊँगी या मन हल्का करने से कुछ ग़लत हो जाएगा! हम दूसरों के सामने कमज़ोर दिखने से भी बहुत डरते हैं। तभी तो कितनी बार खाली या कुछ निराश सी आँखें लेकर ऐमी मेरे कमरे तक आती ज़रूर थी पर हर बार कुछ गंभीर बात करते करते उसे हंसी में टाल कर चली जाती थी।
शायद पुराने संबंधों से दु:ख झेलने के बाद नए संबंध बनाने से डरती थी। मैं भी अपने आस-पास की बिखरी ज़िंदगियों को देखकर नए संबंध बनाने के लिए कुछ उत्सुक तो नहीं ही रहती। पर फिर भी संबंध जहाँ बनने होते हैं वहाँ बन ही जाते हैं। हर बार शब्दों की आवश्यकता नहीं होती। ऐमी से भी ऐसा ही बिन शब्दों का रिश्ता सा जुड़ गया है। उसने वह नौकरी छोड़ दी है। मेरा भी वहाँ पर कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया है। फेसबुक पर वो कभी-कभी मेरी ज़िन्दगी में झांक लेती है और कभी-कभी मैं उसकी ज़िन्दगी में। कई बार साथ में बिताए कुछ पल ही उम्र भर के रिश्ते के लिए काफी होते हैं और कभी-कभी बहुत साल भी साथ रहकर रिश्ते बिखर जाते हैं।