(1)
तेरी महफ़िल में गर ठहर जाते
हम तिरी बेरुख़ी से मर जाते
तेरा हर ज़ुल्म सह लिया हँसकर
छोड़ कर दर तेरा किधर जाते
हाल मेरा जो पूछ लेते तुम
ज़ख़्म मेरे भी कुछ तो भर जाते
इश्क़ माना है दर्द का दरिया
साथ चलते तो पार कर जाते
साथ देतीं अगर हवाएँ तो
बनके ख़ूशबू तेरी बिखर जाते
झूट की क़ैद में थे आईने
वरना कितने ही सच सँवर जाते
रोशनी कैसे उनको मिल पाती
गर अँधेरों से लोग डर जाते
ख़त्म होता नहीं सफ़र वरना
हम भी इक रोज़ अपने घर जाते
याद रक्खे जिसे जहां सारा
काम ऐसा तो कोई कर जाते
कोई ऐसा मिला नहीं ‘ज़ीनत’
ज़िन्दगी जिसके नाम कर जाते
(2)
इश्क पर ज़ोर चलता नहीं
वर्ना दिल ये मचलता नहीं
हम भी होते तेरे साथ ही
वक़्त गर ये बदलता नहीं
किसमें अटकी है साँसें मेरी
हाय दम क्यूँ निकलता नहीं
जाने कैसा है दिल ये मेरा
मोम है पर पिघलता नहीं
देखकर दिल ये ‘ज़ीनत’ उन्हें
देर तक फिर संभलता नहीं
(3)
ग़म ही जब मेरा मुक़द्दर हो गया
फूल सा ये दिल भी पत्थर हो गया
फेर लीं उसने निगाहें यक ब यक
हर तरफ़ बेनूर मंज़र हो गया
बारिशें उसके करम की जब हुईं
रेत का मैदां समुंदर हो गया
दिल से उसकी याद भी जाती रही
ये इलाक़ा और बंजर हो गया
दिल को मीठे बोल ‘ज़ीनत’ चुभ गए
उसका एक-एक लफ़्ज़ नश्तर हो गया