तुम और तुम्हारी तस्वीर से
अक्सर मैं बातें करती हूं
तुम अगर होते तो कैसे लगते
तुम साथ होते तो बात कुछ और होती
तुम अगर होते तो जीवन बहार होता
गुलो-गुलज़ार होता
उम्र के इस पड़ाव पर
तुम अगर होते तो कैसे दिखते
दर्पण में जब खुद को देखा सफेद बालों में
तो ख्याल आया
तुम अगर होते
तो सफेद बालों में कैसे दिखते
तुम्हारी घनी काली मूछें
तुम्हें बेहद प्रिय थीं
चांदी सी चमकती
तुम अगर होते तो
उम्र के इस दौर में
कर्तव्य-बोध से मुक्त
बाहों में बाहें डाले
सुखद स्मृतियों की
पुनरावृति करते
तुम अगर साथ होते!
याद है तुम्हें…
मुझे रूठना बहुत भाता था
और तुम्हें मनाना
… कितने मनुहार करते थे
और कभी कहते
अगर मैं रूठा तो
तुम कभी मना ना पाओगी
क्या यह तुम्हारे अन्तर्मन का स्वर था…
कोई दैविक भावी
शायद इसी लिये
इतनी शिद्दत से चाहते थे
इतनी तन्मयता…
पागलपन की हद तक
एक पल भी आंखों से
ओझल ना करते
तुम तो कहा करते थे
कि मैं कभी बूढ़ा ना होऊंगा
ना तुम्हें होने दूंगा
शायद इसलिये यौवन में ही
तुम तो ऐसे रूठे
कि मैं यौवन में ही वृद्धा हो गई…!
हाय काश!
…तुम अगर होते!