और एक दिन
उठने लगी गंध
जिंदा लोगों की लाशों से।
एक उन्मत्त घोड़े ने
रौंद डाली थी,
पूरी कौम
और तब
केवल कुछ लोग बचे थे
जो माने जा चुके थे
मृत
वर्षों पहले
उनकी उंगलियां हिल रही थीं
लब फरफरा रहे थे
और
कांपते पैर
कर रहे थे कोशिश
फिर से खड़े होने की
तमाम प्रयासों के बावजूद
सड़क के चैराहे पर बैठा
वो पागल
अब भी चिल्ला रहा था
कि उसे न्याय चाहिए,
उसे न्याय चाहिए।
रोते हुए कुत्तों को चुप कराने के बाद भी
सरकारें डर रही थीं
मरे हुए लोगों के जिंदा होने से,
कि अंधेरे में तैरते
कुछ शब्दों से गुजर कर
अशेष अर्थों के मर्तबान से
कि एक दिन,
उठने लगी गंध
जिंदा लोगों की लाशों से