चोरी करना होता होगा एक जमाने में पाप! आज चोरी करना एक कला है, सयानापन है, सफलता की कुंजी है और तो और ख्याति की पगडंडी भी है! हां, रोटी चुराना आज भी पाप और अपराध की श्रेणी में आता है जिसके लिए चोर को कानूनन अनेक धाराओं का सामना करना पड़ता है। जेल की हवा खानी पड़ती है। जेल का पानी पीना पड़ता है। और तो और पत्नी से लड़कर आए हवलदार समेत जेलकर्मियों के हाथ साफ करने का माध्यम भी बनना पड़ता है।
अभी तक मुझे चोर के इसी प्रकार की ही जानकारी थी लेकिन मेरे एक साहित्यिक मित्र ने बताया कि साहित्यिक चोरी भी होती है। मेरे संचित ज्ञान का वर्धन करते हुए कहा कि सफल कवियों समेत कथाकारों, रचनाकारों की रचनाओं को जब कोई दूसरा अपने नाम से प्रकाशित करा ले तो यह साहित्यिक चोरी कहलाती है। मित्र की यह बात मेरे गले नहीं उतरी। जो व्यक्ति रचना को प्रकाशित करा लेने की कूवत रखता है वह कुछ और हो न हो लेकिन किसी भी कीमत पर चोर नहीं हो सकता। भला एक चोर में ऐसी कूवत कहां? अब मित्र का ज्ञान वर्धन करने की बारी मेरी थी। मैंने कुए के मेंढक भांति व्यवहार करनेवाले मित्र के छोटे दिमाग में ज्ञान गंगा की धारा प्रवाहित करने की कोशिश करते हुए कहा कि असल में जिसे तुम चोर कह रहे हो वह चोर नहीं तजुर्बेकार होता है, साहित्य क्षेत्र का खिलाड़ी नंबर वन होता है, खिलाड़ियों का खिलाड़ी होता है और तो और साहित्य क्षेत्र का शहंशाह होता है। दूसरे शब्दों में कहूं तो साहस का पुतला होता है। मित्र ने फिर मेरे ज्ञान को कौवे भांति चचेड़ते हुए दखलंदाजी की- ”नहीं वह चोर ही माना जाता है जिसे साहित्य क्षेत्र में सजा के तौर पर समाचार-पत्र और पत्रिका में ब्लैकलिस्ट करने का प्रावधान भी है”। मैंने फिर मित्र से असहमति जताते हुए कहा कि अगर वह चोर होता तो उसे जेल जाना पड़ता, जेल की हवा खानी पड़ती, जेल का पानी पीना पड़ता! सुनो, तुम ऐसों को चोर कहकर उनकी लियाकत पर बट्टा मत लगाओ। और हां, यह ब्लैकलिस्ट होना क्या बला है? उसने कहा कि ब्लैकलिस्ट मतलब पत्रिका और समाचार-पत्र उसे आगे कभी प्रकाशित नहीं करेंगे! मैंने फिर उनके ज्ञान से छेड़छाड़ करते हुए कहा- मैं तो बहुत सारे ‘ऐसे ऐसो’ को ब्लैक लिस्ट में गिरते फिर कुछ वक्त बाद ही निकलते देखा है। कुछ वैसे ही जैसे डकैती के बाद डकैत का अंडरग्राउंड होना, मामला ठंडा होने पर खुले सांड सा घूमना। क्या तुम्हारी यह ब्लैकलिस्टिंग कुछ वक्त के लिए ही काम करती है?’ मित्र ने सर झुका लिया और मैं समझ गई कि उसके पास मेरे सवाल का जवाब कुछ ऐसे ही नहीं है जैसे डब्ल्यूएचओ के पास इस बात का जवाब नहीं कि दुनिया से कोरोनावायरस कब खत्म होगा? खैर!
चोरों के विषय में जानकारी को विस्तार देते हुए उसने मुझे अर्थ चोरों के बारे में बताया। वे चोर जो आपको मिस्टर इंडिया की तरह दिखाई नहीं देते। हजारों किलोमीटर दूर बैठकर आपके बैंक अकाउंट को साफ कर देते हैं। वह भी आपसे ओटीपी नाम की इजाजत लेकर। इसके विषय में आपका क्या कहना है? मैंने आश्चर्यचकित होते हुए मित्र की ओर देखा। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की बड़ी-बड़ी रेखाएं अपनी जड़े जमा रही थी। अरे यार! यह हुनरबाज और कलाबाज लोग हैं। इनकी स्मार्टनेस हाथ में पकड़े स्मार्टफोन से भी दो कदम आगे वाली होती है। यह बाजीगर जाति के लोग हैं। जो हर एक के बस की बात नहीं। इनके आगे शासन-प्रशासन सब पानी भरते हैं। तुम इनको चोर कहकर इनकी बेइज्जती मत करो।
वह राजनीति के चोरों की बात करता उससे पहले ही मैंने बूथ कैपचरिंग रूप में चोरी को एकदम सिरे से नकार दिया। यह लेन-देन की श्रेणी में आता है। जिनको सूट, साड़ी, कंबल, रुपया पैसा दे दिया तो उनके दिए गए वोट चोरी की श्रेणी में कैसे आ सकते हैं? मित्र ने बीच में ही टोकते हुए कहा कि आजकल नेता जो एक दूसरे का मुद्दा चुरा रहे हैं उसके विषय में क्या ख्याल है? उसे तो आप चोरी मानेंगी? मित्र वाकई बहुत सरल दिमाग ठहरा। उसके सरल दिमाग में कठिन बाद पहुंचेगी या नहीं इसकी गारंटी नहीं थी लेकिन बावजूद मैंने भरपूर कोशिश करते हुए बताया कि यह मुद्दा चोरी नहीं मुद्दा हड़पना हैं। अभी भी उसकी एक जिज्ञासा बची थी। जनता के पास तो मुद्दे ही मुद्दे हैं। जितने मर्जी लो, उसे हड़पने की जरूरत क्या है? अरे भई! जो मजा माल हड़पने में है, माल उड़ाने में है वह उधार लेने में कहां! मेरी बात सुनकर मित्र के चेहरे पर विद्यमान आत्मविश्वास की लाइने एक दूसरे को काटने लगी थी। बस इन्हीं लाइनों को कटता देखना मेरा लक्ष्य था जो अब पूरा हो चुका था। बाकी तो जो है सो है।