दीपा गुप्ता की सात कविताएँ
शहरी भेड़िए तुम्हारे गाल पर पड़े मेरी उँगलियों के निशान मेरी सच्चाई की गवाही हैं कि मैं तुम्हारी तरह कोई...
मूल रूप से संभल (उत्तर प्रदेश) निवासी दीपा गुप्ता विगत 21 वर्षों से अल्मोड़ा में रहकर साहित्य सर्जन कर रही हैं। "अब्दुर्रहीम ख़ानेख़ाना" पर पीएच.डी. उपाधि प्राप्त दीपा गुप्ता की अब तक तीन पुस्तकें शोध संबंधी, एक कविताओं की किताब "सप्तपदी के मंत्र" और दो किताबें संपादित आ चुकी हैं । वाणी प्रकाशन से प्रकाशित "अब्दुर्रहीम ख़ानेख़ाना" में प्रथम बार रहीम के समग्र साहित्य का हिंदी अनुवाद (फारसी को छोड़कर) इनके द्वारा किया गया है। आगा खाँ फाउंडेशन नई दिल्ली की शोध टीम का हिस्सा रहीं दीपा गुप्ता के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, लेख छपते रहते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल में अठारह शोध पत्र तथा अनेकानेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में इनकी भागीदारी रही है। आकाशवाणी की नियमित वक्ता हैं। प्रभासाक्षी का "हिंदी सेवी सम्मान", विश्व हिंदी मंच का "हिन्दी सेवी सम्मान" उत्तर प्रदेश का "युवा सम्मान" प्राप्त दीपा गुप्ता अल्मोड़ा में हिंदी प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं।
शहरी भेड़िए तुम्हारे गाल पर पड़े मेरी उँगलियों के निशान मेरी सच्चाई की गवाही हैं कि मैं तुम्हारी तरह कोई...
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