कविता : मुक्ति-सुसुप्ति
विकास रहता है आजकल आकाश छूती इमारतों में, भव्य मोटर-गाड़ियों में, शायद उसे वैभव पसंद है। विकास घूमता है बेफिकर...
जन्म : 1975
शिक्षा : बी.ई., एम. टेक. , पीएच. डी.
लेखन: हिंदी के प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्रों यथा दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा, सन्मार्ग, प्रभात खबर, देशबंधु इत्यादि में कविताओं का अनवरत प्रकाशन।
हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं यथा ‘वागर्थ’, 'कादम्बिनी', ‘मुक्तांचल’, ‘साहित्य अमृत’ इत्यादि में कविताएँ प्रकाशित।
सम्प्रति : मुख्य रोलिंग स्टॉक इंजीनियर (फ्रेट), दक्षिण पूर्व रेलवे, गार्डनरीच, कोलकाता-43.
विकास रहता है आजकल आकाश छूती इमारतों में, भव्य मोटर-गाड़ियों में, शायद उसे वैभव पसंद है। विकास घूमता है बेफिकर...
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