चार कविताएँ
■ तितली जब उड़ी सूने हथेली पे रेगिस्तान ने विस्तार लिया। वीरानों ने पाओ पसारे। अंधड़ों ने रेखाओं को मनचाहा...
काशी के निवासी। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) से फिल्म एवं रंगमंच में परास्नातक। रंगकर्मी। नाटक और कविता दोनों ही में रुचि रखते हैं।
■ तितली जब उड़ी सूने हथेली पे रेगिस्तान ने विस्तार लिया। वीरानों ने पाओ पसारे। अंधड़ों ने रेखाओं को मनचाहा...
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