‘मंगल भवन अमंगल हारी’ है साहित्य का ध्येय : डॉ. कमल किशोर गोयनका
सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष डॉ. कमल किशोर गोयनका ने शनिवार को नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादेमी सभाकक्ष में साहित्यिकी डॉट कॉम का लोकार्पण किया। इस अवसर पर ‘साहित्य का सामर्थ्य’ विषय पर विचार-गोष्ठी भी आयोजित की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. कमल किशोर गोयनका ने कहा कि एक रचनाकार संस्कृति की कोख में पैदा होता है और तब जाकर वो पूरे जीवन के यथार्थ को सामने रख पाता है। उन्होंने साहित्य जगत की विडंबनाओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हमें बहिष्कार का भाव खत्म कर सबको बराबर की जगह प्रदान करनी होगी। उन्होंने कहा कि बाजारवाद को ही हर बात के लिए दोष देना उचित नहीं हैं। आखिर इसका विकल्प क्या हैं? अगर कोई लेखक अपने युग में लोकप्रिय है तो वह बिकेगा ही। प्रेमचंद को भी उनके दौर में ही कहानी सम्राट की उपाधि मिली जो आज तक कायम है। उन्होंने ऑनलाइन माध्यम की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके माध्यम से हम असीमित पाठकों तक साहित्य को पहुंचा सकते हैं। अंत में उन्होंने तुलसीदास की चौपाई ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ का उल्लेख करते हुए कहा कि साहित्य मंगल की कामना और अमंगल का नाश करता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि साहित्य संघर्षों से उपजता है। उन्होंने कहा कि साहित्य सोच-समझकर लिखा जाने वाला माध्यम है। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि अक्सर ऐसा देखा जाता है कि सबको लिखने की पड़ी रहती है, जब हम पढ़ने की ललक उसी सापेक्ष में शुरू करेंगे तो साहित्य का अपना नया स्वरूप कायम होगा। उन्होंने कहा कि इस वेबसाइट पर केवल हिन्दी साहित्य के बारे में ही नहीं, अपितु भारतीय भाषाओं का साहित्य भी प्रस्तुत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि साहित्यिकी डॉट कॉम साहित्य का एक नया लोकतंत्र रचेगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी की प्रोफेसर एवं लेखिका डॉ. कुमुद शर्मा ने कहा कि एक पाठक जब किसी रचना को पढ़ता है तो एक पूरी यात्रा उसके दिलो-दिमाग पर छाप छोड़ देती है, जो बाद में चलकर एक मानव के हृदय में तमाम सवालों को जागृत करता है और आखिरकार वह वैचारिक रूप से संपन्न होता है। लेकिन उन्होंने इस ओर भी चिंता जाहिर कर दी कि लगता है कि आज का रचनाकार जल्दबाज़ी में है। उन्होंने कहा कि साहित्य आंदोलन से नहीं चल सकता, न ही राजनीतिक मेनिफेस्टो से चल सकता है। उन्होंने स्त्री-विषय पर लेखन संबंधी विषयों पर भी विस्तार से चर्चा करते हुए नई पीढ़ी के रचनाकारों को अस्मिता के साथ चलने और अपने लिए सजग रहने की बात की।
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक एवं सुपरिचित लेखक प्रभात रंजन ने कहा कि सभी तरह के विचारों का स्वागत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि साहित्य ने सदैव राजनीति को दिशा दिखाई हैं परन्तु वर्तमान में स्थिति बदल गयी है। उन्होंने साहित्य के बाज़ारीकरण से जुड़ने पर भी चिंता जाहिर की। साहित्यिक संवाद की परंपरा को मजबूत बनाने पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के सामने यह चुनौती है कि वे इसे पूरी निष्ठा के साथ जारी रखें।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, लेखक एवं साहित्य अकादेमी के सदस्य डॉ. अरुण कुमार भगत ने कहा कि साहित्य मानवीय संवेदना से उपजी ऐसी अभिव्यक्ति है जो सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है।
सुपरिचित आलोचक एवं दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय ने साहित्य में वैचारिक छुआछूत को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि वामपंथी विचारधारा के साहित्यकारों ने साहित्य का राजनीतिकरण किया और दूसरी विचारधारा के लोगों द्वारा लिखे गए साहित्य को दोयम दर्जे का करार दिया। इससे साहित्य का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि हिंदी आलोचना भी उधार की आलोचना रही जो मौलिकता से कोसों दूर रही। उन्होंने कहा कि विचारधाराओं में बंटा साहित्य, साहित्य नहीं बल्कि किसी राजनीतिक पार्टी के प्रचार का माध्यम मात्र बनकर रह जाता है। उन्होंने नए विचारों के साथ एक स्वस्थ संवाद स्थापित किए जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि साहित्य को इस कगार पर ला खड़ा कर दिया गया कि साहित्य राजनीति के पीछे चलने लगी, लेकिन अब इसे सही राह पर लाने की चुनौती है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्यिकी डॉट कॉम के संपादक संजीव सिन्हा ने स्वागत भाषण एवं वेबसाइट का परिचय प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि साहित्य मनुष्य में संवेदना, करुणा, त्याग जैसे गुणों को प्रवहमान बनाता है। इसलिए शब्द की सत्ता को प्रतिष्ठित करते हुए साहित्यिक समाज विकसित करना हमारा उद्देश्य है।
कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक प्रभांशु ओझा ने एवं धन्यवाद ज्ञापन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं लेखक डॉ. सौरभ मालवीय ने किया।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, आलोक कुमार, प्रो. संजय द्विवेदी, प्रो. आरएम भारद्वाज, कथाकार आकांक्षा पारे काशिव, उपन्यासकार राजीव रंजन प्रसाद, अशोक ज्योति, बिनोद कुमार झा, कवयित्री सोनाली मिश्रा, पश्यंती शुक्ला, निवेदिता झा, शरत झा, आदित्य झा, हर्षवर्धन त्रिपाठी, संजय तिवारी, जयंती सहित बड़ी संख्या में साहित्यकारों एवं साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। (सहयोग : सुशांत)