धान रोपती औरतें
गाती हैं गीत
और सिहर उठता है खेत
पहले प्यार की तरह
धान रोपती औरतों के
पद थाप पर झूमता है खेत
और सिमट जाता है बाँहों में उनकी
जितने सधे हाथों से रोपती हैं धान
उतने ही सधे हाथों से बनाती हैं रोटियाँ
मिट्टी का मोल जानती हैं
धान रोपती औरतें
खेत से चूल्हे तक
चूल्हे से देह तक
गुनगुनी धूप सी होती हैं
धान रोपती औरतें
सेंक देती हैं ..रोटी, खेत और देह