हंसती खेलती मेरी दुनिया, एक दिन बेरंग हो गई।
कुछ समझ ही न पाई मैं , उसके चले जाने के बाद।
पहले नन्हे क़दमों से मैं , लड़खड़ा गिर जाती थी।
तब वो आकर मुझे अपनी, बाहों में भर लेती थी।
लेकिन उसके जाने के बाद, मैं फिर गिरा करती थी।
पापा कहते ठोकर खाकर, खुद से उठ जाने दो।
ताकि बड़ी होकर वो, किसी सहारे की राह न देखे।
तब से अब तक मैं भी, खुद ही उठती आई हूं
लेकिन आज भी ये मन, कहता है खुद से बार बार।
एक बार के लिए वापस, आकर तो देख ले माँ।
फिर एक बार गिरकर, तेरी बाहों में आना चाहती हूं।
छुप कर तेरे आंचल में, गहरी नींद सो जाना चाहती हूं।