(मंगलेश डबराल के लिए…)
१.
धरती के कवि का जाना
कुछ यूं है
जैसे भाषा में छा गई हो उदासी
और शब्द अपने अर्थों को छोड़कर
भावों को जीवन से बेदखल कर चुके हों
२.
हर कोई नहीं होता जीवन का कवि
हर कोई नहीं गा पाता धरती के गीत
प्रेम कविता का नाम कितना आसान है
जैसे क्राफ्टिंग
कविता में शब्दों के जोड़ तोड़ की पीढ़ी
जब प्यार की कविता लिखती है
तब भाषा हंसकर देखती है धरती के कवि की तरफ
धरती का कवि अभी सोया है
लंबी नींद
जब जागेगा
तो ले आएगा एक बार फिर
कविताओं की सुंदर दुनिया में
जीवन की जीवंत कविताएं
३.
उसका जाना
कोई आम तरह का जाना नहीं था
उसके जाने पर
भाषा स्तब्ध रह गई थी
४.
पहाड़ पर लालटेन जलाना मुश्किल था
शब्द मगर दुःसाहसी
और उसने एक दिन जलाई लालटेन
तब पहाड़ पहली बार देख रहा था
लाल रोशनी
५.
जब फिलिस्तीन के बच्चे बिलख रहे थे
भारत में ढहने लगी थी झुग्गियां
दैत्य जब सिंहासन पर आ बैठा था
और कुलबर्गी और दाभोलकर और पानसारे की हत्या करके
देश के गौरव को मटियामेट कर दिया गया था
और जीवन हताश खड़ा था गौरी लंकेश की लाश पर
तब ‘ज़िंदाबाद’ के नारे लगाते हुए
बढ़ आया था धरती का कवि
बंद मुट्ठियां तनी हुई
राजा के महल की सड़क पर
६.
जब हमने कविता को समझना शुरू किया ही था
तब हर तरफ महानताएं फैली थीं
अश्लील महानताएं
जो भाषा में स्थापित होने के लिए शब्द की गरिमा तक से खिलवाड़ कर जाते थे
गुटखा से बदरंग हुए दांत निकालते जब वे किसी
नई कवयित्री के कंधे पर हाथ रखते
कविता कसमसाकर रह जाती
और पद, और ऊंचाई जब प्रतिष्ठा बनकर पसरी थी
चमक दमक में भाषा और कविता जब उपेक्षित थीं
तब ‘पहाड़ पर जली थी लालटेन’
और शब्द स्थापित हुए थे सम्मान के साथ
तब हमने जाना कविता का सही रूप
तब हमने जाना मंगलेश डबराल होने के अर्थों को
७.
जब हमने शब्दों से परिचय शुरू किया
भाषा को जानना चाहा
तब जयपुर से दिल्ली और भोपाल से इलाहाबाद तक
उम्र के युवा
लेखक मंचों की सीढ़ियां चढ़ ऊपर तक आ चुके थे
तब हमने जो भाषा पढ़ी
वो असहज थी, व्यथित और बेतरतीब
कविताएं तब क्राफ्टिंग की हिंसा की शिकार थीं
और जीवन जान-पहचान और गुट गिरोहों के हाथों बलात्कृत रहा
अचानक असद जैदी के कंधों पर हाथ रखे
राजपथ पर हल्के कदमों से बढ़ते आए थे
पहाड़ के कवि
कविता उस दिन प्रफुल्लित होकर
अपने सहज रूप में आई थी