लगे कुछ कुछ खराब सा
अब गिरे, तब गिरे,
पिए तो भी ग़म से घिरे,
बेशकीमती है नजर जिसकी,
हर सुबह, हर शाम उसकी,
शराब तो बस बहाना है
मंज़िल ने कहा – ‘तुझे सूरज तक जाना है..’
कितना खुद को तडपायेगा,
बेसुध होकर जाने
किस चौखट गिर जाएगा,
सुबह को जी
नए अंदाज से,
सांझ में लिपटे हों
कुछ राज से,
रात को थक कर
बिन पिए ही
सुकून से सो जा,
कुछ नहीं तो
एक पल को खो जा,
क्यों शराब के करीब होता है?
पीने के बाद भी हर शराबी रोता है,
ठहर थोड़ा सा :
ज़िन्दगी को जांच,
गम है कांच,
हर पल को गुलाब सा बना,
काँटों के बीच तू मुस्कुरा…!
2. मैं गृहणी हूँ…
कितने बरस बीत गए
वही सुबह
वही शाम है
रोज़र्मरा की वही थकान है,
परिवर्तन है तो
बस इतना कि-
आसमाँ के मस्तक पर
सुबह होते
लाल बिदिया सी सजती हूँ मैं,
और सांझ सी थक कर
चूर हो जाती हूँ मैं,
बिना
किसी महत्वाकांक्षा के
दिन भर करती काम, बिन आराम में
मैं गृहिणी हूँ सुबह और शाम सी…!
3. यह आकाश
यह आकाश
अद्भूत प्रकाश
एक सिरे से
छुटकर
दूजे छोर को
छूता है,
धरती की
विरह वेदना को
बारिश की बूँदों से
शीतल करता है..!