मौन का सफ़र
जाना चाहता हूँ एक ऐसे सफ़र पर
जाना चाहता हूँ एक ऐसे सफ़र पर
जहाँ से चाहकर भी लौटना मुमकिन नहीं
इस आपाधापी से दूर किसी निर्जन में
कोलाहल से दूर शून्य की ओर,
जहाँ एकांत में हो सके मौन से वार्तालाप
अकेलापन हो शिल्प मौन जहाँ भाषा हो!इस मिथ्या जगत से दूर किसी दैवी भूमि पर
हो सके तो मेरे मन ले चल मुझे वहाँ
मैं अपने आप से साक्षात्कार करना चाहता हूँ
जहाँ सुख-दुःख आशा-निराशा से परे-
हो केवल एक असीस मौन की अभिव्यंजना
मैं जाना चाहता हूँ ऐसे सफ़र पर
जहाँ से लौटना चाहूँ तो भी लौट ना सकूँ।
अकेलापन हो शिल्प मौन जहाँ भाषा हो!इस मिथ्या जगत से दूर किसी दैवी भूमि पर
हो सके तो मेरे मन ले चल मुझे वहाँ
मैं अपने आप से साक्षात्कार करना चाहता हूँ
जहाँ सुख-दुःख आशा-निराशा से परे-
हो केवल एक असीस मौन की अभिव्यंजना
मैं जाना चाहता हूँ ऐसे सफ़र पर
जहाँ से लौटना चाहूँ तो भी लौट ना सकूँ।
तुम आना
तुम आना जैसे आती है
रात के बीतने पर भोर
पतझड़ के बाद जैसे-
लौटती है बसंत
दुखद समय में चेहरे पर अनायास
लौटती है जैसे मुस्कान
तुम वैसे ही आना!
आना अवचेतन में
स्वप्न की तरह
फूलों में पराग की तरह
आना हवा में नमीं बनकर
बूँद बनकर बादलों में
तुम आना!
मेरी अधूरी कविताओं में
सबसे प्रभावशाली पंक्ति बनकर
कुछ ना कह पाने की अवस्था में
मेरी अभिव्यक्ति बनकर आना
जैसे खेलने के बाद
थका हुआ बच्चा लौटता है
अपनी माँ की गोद में
तुम वैसे ही आना!