1.
प्रकृति का प्रेमपत्र
प्रकृति ने लिखा था
एक प्रेमपत्र
और चाहती थी
प्रतिउत्तर।
पत्र से प्राप्त आंनद में
तुम लिप्त रहे
तुम्हें ज्ञात ही नहीं हो सका
कि कब वह पत्र लुप्त हो गया।
और फिर यह सिलसिला सा हो गया
उसके पत्र
तुम्हारी बेपरवाही
बनते गये तुम्हारी प्रवृत्ति।
अब तुम करने लगे उसका उपहास
करने लगे उसे आहत
वो चुपचाप सी खड़ी
देखती रही तुम्हारी निर्लज्जता
और तुम तार तार करते रहे उसे।
प्रेम अभिव्यक्ति
तुम्हें भी तो करनी थी
कब तक बरसाती वो एक तरफा नेह ।
कितनी बार दिये उसने संकेत
पर निष्फल
चुपचाप रही प्रतीक्षा में
प्रेम के प्रतिदान के
सदियों तलक।
फिर उसका सब्र
गया छलक
उसने फिर लिखा
प्रेमपत्र नहीं
चेतावनी।
2.
बारिश और हम लड़कियाँ
ये बारिश…
हम लड़कियों जैसी ही तो होती है
जब ये रिमझिम करके आँगन में उछलती है…
तो बचपन की याद दिलाती है…
नन्हे नन्हे पैरों में
नन्ही सी पायल पहन
माँ का आँचल पकड़
इस आँगन से उस आँगन तक
छम छम सा गुनगुनाती है…
ये बारिश…
हम लड़कियों जैसी ही तो होती हैं
जब ये टिप टिप कर के
अपने आने की आहट देती है
तो मानो किशोरावस्था
जीवन के दरवाजे पर
अधीर हो दस्तक देती है…
इन बूँदों का उत्साह देखते ही बनता है
ठहरे हुए पानी में छोटी बड़ी तरंगों को बना
ये मुस्कराती हुई इतराती है
ये बारिश…
हम लड़कियों जैसी ही तो होती है…
भाप बन अपने अस्तित्व को भूल
चुपके से सयानी दुल्हन बन
बादलों में मिल जाती है
उन्हें अन्दाज़ा होता है अपने कर्तव्यो का…
शायद इसी लिए
मौसम की चार दिवारी से घिरी रहती है
पर जब लौटती है
तो फिर वैसे ही उछलते कूदते
शोर शराबे के साथ
अल्हड़ किशोरी सी…
मायके जो आती है
ये बारिश…
हम लड़कियों जैसी ही तो होती है…
3.
शाम
शाम
धूप के आँचल को
धीरे धीरे
सरकाती है माथे से।
हवाओं के संग
लहराती है
अपने काले घने बालों को।
फिर चमकने लगता है
उसके माँग का सिन्दूर
दिखायी पड़ता है
एक अद्भुत रूप।
चाँद
समेटने लगता है उसे
अपने बाहों में।
और फिर रंग जाती है
वो, उसके रंग।
बिखरती है चाँदनी बन।
समय के साथ
दिनमान
देता है अपने आने की आहट
सहेजने लगती है खुद को।
काले घने बालों का
कसकर बनाती है जुड़ा।
बड़ों के सम्मान में
सर को ढकने के लिए
ओढ़ने लगती है धूप का आँचल
जो घूँघट बन छुपाता चला जाता है
चमकता हुआ सिंदूर।
4.
प्रेम
प्रेम, बंधन नहीं
एक खुला आसमान है
अनंत और अथाह
ओर-छोर से मुक्त
विस्तृत और अगाध है।
प्रेम, शास्त्र नहीं
एक अपठित सा पृष्ठ है
जो अवलंबित हैं
वर्णनातीत से
आलोच्य और मननीय है।
प्रेम, क्षितिज सा अपार
ब्रम्हमुहूर्त सा पवित्र है
अपूर्व अद्भुत सा
मनोरम और मनुहार है।
5.
मुखर आसमान
अभिव्यक्ति
अनुभूति से प्रेरित
ढूंढता है
अपना एक मुखर आसमान
विचारों के पिंजरों से निकल
भावों के पक्षी
शब्दों के पंख लगाये
भरते हैं उड़ान
अपने लक्ष्य की तरफ
जो होता है पूरा
अभिव्यक्ति के मिलन से…