1. पृथ्वी और तुम
मुझे पृथ्वी से
बहुत प्रेम है,
मैं ने कभी नहीं चाहा
कि पूरी की पूरी पृथ्वी
मेरी हो जाए।
मैं तुमसे उतना ही प्रेम करता हूँ
जितना कि पृथ्वी से।
मैं तुमसे और पृथ्वी से
बस जीने भर की
जगह चाहता हूं।
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2. तुम्हारा आना और जाना
तुम आती हो
जैसे आती है
सूरज की किरण
मेरी आँखें
सोलरप्लेट हो जाती हैं
और दिल बैटरी।
तुम्हारे आने से ही
रिचार्ज होता रहता है
दिल…
पाता है ऊर्जा तुम्हीं से
दिन भर उसी ऊर्जा से चलता है
मेरे दिमाग का म्यूज़िक सिस्टम
रात का सिनेमा
जिसमें मैं देखता हूँ
सदा बहार नग्मों के साथ
कुछ हसीं ख़्वाब
तुम्हारा आना
रगों में खून
तार में करन्ट
आने जैसा है।
तुम्हारा आना
पतझड़ में सावन
मैदान में हरियाली
प्याली में चाय
आने जैसा है।
जब तुम नहीं आती हो
दिल रिचार्ज नहीं हो पाता है
बंद हो जाता है
मेरे दिमाग का म्यूजिक सिस्टम
रात के सिनेमाघर में
अँधेरा छा जाता है।
तुम्हें शायद पता नहीं
जब नींद में ख्वाब
और ख्वाब में तुम नहीं आती
तो मुझे नींद नहीं आती
जब तुम नहीं आती
तो चिड़िया भी नहीं गाती
हरियाली भी सूख जाती है
नदियाँ ठहर जाती हैं।
तुम्हारा चले जाना
हथेली से भाग्य
और चिलम से आग का
चले जाने है।
तुम्हारा चले जाना
ठीक वैसा ही है
जैसे मेरी आँखों से रोशनी
चली गयी हो।
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3.सीढ़ी पर प्रेम
1.
हम अस्पताल में नहीं
सीढ़ियों पर जन्मे थे
जन्मे नहीं उग आए थे
जैसे कई दफ़े
दीवारों पर
उग जाते हैं
पीपल।
2.
जैसे अनायास ही
धरती पर फैल जाती है
धूप,
अनायास ही बरस जाता है
पानी,
अनायास ही चहक उठते हैं
पक्षी,
वैसे ही कई बार
अनायास ही
उग जाते हैं
सीढ़ियों पर प्रेम।
3.
तुम से
एक दो नीचे पायदान पर
बैठे हुए
मैं तुम्हारे पाँव को
पृथ्वी की तरह
हाथ में उठाता हूँ
और चूम लेता हूँ
जैसे धरती को
चूमता है
बसन्त।
4.
सीढ़ी
जिस तरह ऊपर ले जाती है
उसी तरह नीचे भी
सबके नसीब में
सीढ़ी चढ़ना नहीं होता
कइयों के नसीब में
लुढ़कना भी होता है।
मेरे लिए
यह तय करना बहुत मुश्किल है
कि हम दोनों में से
कौन चढ़ गया
और कौन लुढ़का।
5.
भूख दोनों में थी
किसान में कम,
ज़मींदार में थोड़ी ज़्यादा।
फ़र्क बस इतना था
भूख लगने पर
ज़मींदार दहाड़ता था
और
किसान को कराहने की भी
फ़ुरसत नहीं थी।
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5. तुम
तुम बहती
एक नदी की धारा-सी
मैं मिला तुमसे
तेल की एक बूँद बनकर
मैं आज भी दिन प्रतिदिन
शीतल होता
बहता हूँ।
तुम्हारी धारा में
और एक तुम
जो अब तक
इससे बिल्कुल अंजान हो।
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6. ख़ामोशी
ख़ामोशी
केवल ख़ामोशी
तुम्हारे और हमारे बीच
छत और फर्श के बीच
वही ख़ामोशी
जो धरती और आकाश के बीच
सदियों से है।
ख़ामोशी खींचती है
और ले जाती है
एक दूसरे से दूर।
कभी देखा है
आकाश और धरती के बीच
कोई बात होते हुए
या फिर
आपस में झगड़ते हुए
कहाँ होता है ये सब
उनके बीच।
यही छत और फर्श के बीच भी है।
बादल फटकर गिरता है या
छत से गिरती है
टूटकर छोटी-सी पपड़ी
और टूटती है ख़ामोशी
केवल पल भर।
मगर हमारे बीच की ख़ामोशी
कमरे की दो दीवारों के
बीच की ख़ामोशी है।
आकाश ढहे तो
धरती पर गिरेगा
और छत भी फर्श पर
मगर हम ढहेंगे भी तो
अपनी-अपनी जगह,
कमरे की दो दीवारों की तरह।
नहीं, तोड़ना होगा
मुझको या तुमको
इस ख़ामोशी को
नहीं तो ये ख़ामोशी ले जायेगी
मुझको और तुमको
और फेंकेगी इतनी दूर
कि परास का अंदाजा
शायद ही लगे।
इसी बीच
मैं प्रयास करता हूँ
ख़ामोशी को तोड़ने का
मगर कंठ के भीतर ही
लड़खड़ाकर रह जाती है
बेबस जीभ
कंठ से उतरता है
कुछ शीतल तरल
निकलती है एक ध्वनि
बिल्कुल ‘न’ भर
और वो भी
ख़ामोशी के इस दायरे में
ख़ामोश होकर रह जाती है।
और ख़ामोशी
ख़ामोशी से
हमारे भीतर करती रहती है
कोलाहल।
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7. ‘ठाँ करे ठाँ करे’
ठाँ करे ठाँ करे
शासन की बंदूक ठाँ करे,
बारह मास चौकन्ना कम्पनी
क्षण में नेस्तनाबूद जा करे।
ठाँ करे ठाँ करे
शासन की बंदूक ठाँ करे
तुम ही लिए विनाश का ठेका
तुम ही बने जियावनहारे
कौन सी बूंटी चढ़ी है तुमपर
ये कैसी करतूत बावरे
ठाँ करे ठाँ करे
शासन की बंदूक ठाँ करे।
देवतागण धृतराष्ट्र हुए
शुरू है सबका खेल प्रिय
कैरम का है खेल बिछा अब
बीच में फँसी है क्वीन क्या करे
ठाँ करे ठाँ करे
शासन की बंदूक ठाँ करे
लोकतंत्र की ऐसी तैसी
क्षण में नेस्तनाबूद जा करे
ठाँ करे ठाँ करे
शासन की बंदूक ठाँ करे।
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8.दूरी 750 किमी.
(बलरामपुर के राघवराम के लिए)
जिस समय
कोरोना जैसी महामारी के धुएँ से
दुनिया का दम घुट रहा है
उस समय
एक चूल्हे से निकलता धुआँ
आसमान में लिख रहा है
जिंदगी बनाम मौत का नारा।
घर के भीतर
दो जोड़ी आँखें हैं
जो अक्सर भर आती हैं
एक दूसरे को खोने के भय से।
फर्श पर गिरते आँसू
लगातार कहते हैं
मुझे फर्श नहीं
मेरी मिट्टी चाहिए।
सड़क किनारे लम्बी कतार है,
भूख और भय से भरे
बूढ़े, जवान और बिलखते बच्चों की कतार।
सब के सब
दुनिया से निष्कासित
चले जा रहे हैं
एक अंतहीन यात्रा पर
अपने अपने चेहरे पर
प्रश्नचिन्ह लटकाए।
फेफड़ों का भरोसा उठ चुका है
अब हवा से,
अंतड़ियाँ
किसी ऋणी की भाँति
भूख से मांग रही हैं
कुछ वक्त की मोहलत।
आंखें जो भरी हुई हैं
दूर तलक फैली सड़क के उसपार
क्षितिज में डूबती रोशनी-सी जिंदगी को
लपक लेने की चाह से।
धड़कने जो कि हृदय के नियंत्रण से बाहर जा चुकी हैं,
हाथ हैण्डल थामें तय कर रहे हैं दिशा।
आगे हैंडल पर झोला है,
और पीछे कैरियर पर प्रेम।
पैर किसी तानाशाह के हुक्म की सनक से भरे
सैनिक की तरह
पैंडलों से कर रहे हैं
युद्ध…अविराम।
सायकिल के दोनों पहिये
कर रहे हैं
एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा।
कंधे पर एक हाथ है
जिसका स्पर्श
बार-बार कह रहा है
हमें अभी और जीना है,
और पैरों की सनक दोगुनी हो जाती है।