1. (मेरी कविताओं में आए बूढ़े कवि के लिए)
प्रिय बूढ़े कवि
जब तुम बूढ़े हो रहे थे
तब मैं अपनी माँ की गोद में
उनके मङ्गलसूत्र से खेल रही थी
तुम्हारे बोध का उत्सव चल रहा था
बुढ़ापे में बोध का उत्सव
कितना शानदार रहा होगा
है न?
जब तुम्हारी हथेलियों पर
तुम्हारी लिखी कविताएँ नाच रही होंगी
तो मैंने गलती से नोच लिया होगा
अपनी माँ का मुख
जब तुमने किया होगा
अपनी किताबों पर हस्ताक्षर
तो मैं भूख से चिल्ला उठी होऊँगी
जब तुम सो रहे होगे
गहरी(तुम्हारी कविताओं से कम) नींद में
तो मैंने बोला होगा अपना पहला शब्द
जब तुमने चढ़ाई होगी
अपने माथे पर शिकन
तो टूटे होंगे मेरे दूध के दाँत
प्रिय बूढ़े कवि
तुम्हारा होना ही
इतना भरा हुआ था अर्थों से कि
तुम्हारे शरीर के पञ्चतत्त्वों में भी
पाँच बार ‘अर्थ’ ही आए
जब तुम कभी निराश हुए होगे
तो ज़रूर मैंने तोड़ा होगा कोई फूलदान
या भूली होऊँगी गमलों में पानी डालना
जब तुमने चश्मा लगाने के बाद भी
पढ़ने में किया होगा सङ्घर्ष
तो ज़रूर मैंने फाँद ली होगी
एक रूढ़िवादी दीवार
जब तुमने त्यागकर अन्न-जल-अक्षर
चुना होगा टुकुर-टुकुर ताकना
तो मैं रही होऊँगी
तुम तक जानेवाली सड़क पर
और फिर एक दिन तुमने मूँद ली अपनी आँख
और वह सड़क इतनी लम्बी हो गई
कि उस पर मैं अब भी चल रही हूँ
और बूढ़ी होती जा रही हूँ
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2. (स्वीकारोक्ति)
मैं तुम्हारे पाँवों के नीचे
सड़क बनकर बिछा हूँ
और तुम एक
ढीठ
अड़ियल
यातायात के नियमों का
पालन करते हुए
मेरे हृदय पर
आघातें करती हुई चली जा रही हो
तुम ज्ञान हो अब
तुम्हें रोकना निरर्थक होगा
तुम्हें सीख लूँगा अब
बिना किसी दण्ड के
तुम सजल थी
उड़ गई एक दिन भाप की तरह
मैं पेंदी में भी न बचा पाया
तुम्हें अपनी अग्नि से
एक जङ्गल की खीज लिये
पत्ते सा तुम को गिरते देखा
तुम अनन्त में जा मिली और
मैं जोड़ न सका वापस
तुम हिसाब-किताब की
इतनी पक्की
कि तुम्हारी पूर्वमृत्यु भी
किताब में दबकर हुई
मैं छद्म शान्ति का बुना हुआ
समझ ही नहीं पाया कि
तुम्हारा प्रवेश ही
एक भूला पर्व था
तुम जाती ही तो रही थी
तुम समय थी-नगण्य
तुम्हें स्वीकार न कर सका
तुम सत्य थी-कटु
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3. (ईश्वर की पात्रता)
लो लौटा रही हूँ
तुमको ईश्वर
मेरी प्रार्थनाएँ सुनने का ऋण
अब देख लो हिसाब-किताब
लोगों ने कहा
तुम्हें चाहिए एक सुगन्धित कविता
जो कि मेरे पास तो नहीं
रखती हूँ अब सामने यह
गरीब भूख की बासी कविता
सिंहासन छोड़ो ईश्वर
आओ पालथी मार कर
साथ में तोड़ते हैं निवाला
तुम भी कह लेना अपनी
ईश्वर आज हम तुम
कन्धे से कन्धा मिलाकर
छाटेंगे बतकही
करेंगे दातुन
ऐ ईश्वर क्या तुम
अपने घर के जाले नहीं साफ़ करते
हें? और इतनी गर्मी में
मुकुट कौन पहनता है
आओ खिलाती हूँ
तुमको कान्द का अचार
तुम्हारी नानी तो भेजती नहीं होंगी
बड़े आदमी जो ठहरे
कितने साल हुए
तुम्हें कान का खूँट निकाले
लाओ तेल डाल दूँ
फिर सुनना प्रार्थनाएँ चकाचक्क
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4. (मेरा ईश्वर एक टूटा बिजूका)
मेरा ईश्वर दरारें नहीं भरता
बल्कि वह मुझे अभ्यस्त बनाता है
कम्पन और ठोकरों से
मेरे ईश्वर ने कभी नहीं कहा कि
दु:ख के बाद सुख अवश्य आएगा
उसने तो मेरे दु:ख के आगे
दूसरों के दु:ख रख दिए
और मेरा दु:ख
अपने आप ही छोटा हो गया
मेरा ईश्वर कभी नहीं कहता कि
मैं उससे डरूँ
और उसकी प्रार्थना करती करूँ
बल्कि कभी-कभी तो वह
एक टूटे हुए बिजूके सा हो जाता है
जिसकी आँखें कौवे नोच ले जाते हैं
मेरे ईश्वर के भीतर
महानता की कोई नदी नहीं बहती
जिसके स्वच्छता अभियान के लिए
तुम नारे लगाओ
वह तो किसी गमले में
पुन:प्रयोग किये जाने वाले पानी से भी
उग आता है