वो मुझसे प्रेम करता था
मैं उसे प्रेम करती थी
वो मेरा ख़्याल रखता था
मैं उसका ख़्याल रखती थी
समय गुजरा
वो मुझसे नफ़रत करने लगा
मैं अब भी उसे प्रेम करती थी
वो मेरी बीमारी को ढोंग कहता था
मैं उसके बीमार न होने की दुआ करती थी
और समय गुजरा
उसको अपने कहे पर पछतावा हुआ
मैं अब भी उसे प्रेम करती थी
उसे फिर से मेरी फ़िक्र होने लगी
मैं अब भी उसके बेहतरी के लिए सोचती थी
और अधिक समय गुजरा
वो अब मुझसे बात करना, मेरा ख़्याल रखना चाहता है
पर मैं अब उससे प्रेम नहीं करती
वो अपनी सारी गलतियां मानना चाहता है,
उसे ठीक करना चाहता है
लेकिन अब मैं उसके बारे में तक नहीं सोचती,
वो कहता है कि मैं बदल गयी हूँ
मैं अब उसे इस बात का जवाब नहीं देती हूँ
वो कहता है कि मुझे उससे कभी प्रेम नहीं था,
तो मैंने उससे कहा
तुम इतने सालों में प्रेम, नफरत, प्रायश्चित की
श्रेणियों से गुजर चुके हो
मैंने केवल प्रेम और तुम्हें माफ़ करना जाना है
ये मध्य की श्रेणियाँ नहीं जानी
इसलिए,
मैं अपने प्रेम को भी साबित नहीं करना चाहती।