लैपटॉप का बटन शिखा ने डरते-डरते ऑन किया। फिर से चैटिंग पर गई, कई नए आईडी से कई सारे मैसेज भरे पड़े थे रॉबिन के! कुछ प्यार के, कुछ मनुहार के। कुछ संदेशों में वह उसके इंतज़ार की बात कर रहा था। प्रेम के हर रूप की इन्तहा के साथ उसके इनबॉक्स में हठ ठाने संदेश उसे कहीं न कहीं परेशान कर रहे थे। वह क्या करें, क्या कहे? एक मैसेज कहीं से कुछ कहता तो दूसरा कहीं से हेलो करता!
“हेलो शिखा!”
“हाऊ आर यू!”
“वेटिंग फॉर योर रिप्लाई!”
शिखा को फिर से भय लगा! शिखा के अंग-प्रत्यंग में एक सिहरन सी हुई और उसे फिर से कुछ न कहते हुए नहीं बना, वह क्या करे? क्या उसके वश में था? शिखा को लैपटॉप एकदम एक विशालकाय एनाकोंडा लगने लगा था, जो उसे निगलने के लिए उतारू था। उन मैसेज को देखकर वह फिर से पसीना-पसीना हो गई थी। विशाल से अलग होने के बाद वह खुद के खोल में सिमट गई थी। कितना कठिन था उन खोलों में जाना और वहां से वापस आना! पहले तो उसे वह खोहें बहुत मुश्किल से पकड़ में आई थीं। शिखा के छोटे शहर में सपनों की उड़ान बहुत छोटी ही तो हुआ करती थी। कितने सपने ही थे उसके? बस एक अच्छा सा प्यार करने वाला पति! और क्या? जबरन रो-धोकर जैसे-तैसे मां ने अंग्रेजी से एमए करा दिया था। यह शिखा को ही पता है कि कैसे उसने शेक्सपियर की एज यू लाइक इट रटकर याद की थी।
शिखा को हर बार मां की वही धमकी ध्यान आती रहती थी, “अरे कर लियो कछु एमए वैमए अंग्रेजी में, तो मिल जइए दूल्हा नीको, नहीं तो भोगांव और मैनपुरी में ही बिडी रहियो!”
शिखा घबराकर शेक्सपियर को लीलने लगती! उसे भोगांव के बारे में किए जा रहे मज़ाक याद आने लगते थे, “हओ, भोगांव! का लला भोगांव के हो क्या!” और सामूहिक समवेत हंसी! कितनी विद्रूपता से भरी हंसी थी वह! शिखा उस समय उसी विद्रूपता से भर उठती, वह चीखने की कोशिश करती, मगर चीख नहीं पाती। मां चार औरतों में बैठकर उसकी तारीफें करती!
“अरे, हमाई सिखा कर रही हैं, इंग्रेजी से एमए! कौन सो हमें भोगांव ब्याह्नो है! हमें तो अपईं बिटिया को ब्याह्नो है दिल्ली!”
और फिर शेक्सपियर और कीट्स या शेली उसे दिल्ली की तरफ धकलनेवाले बल लगने लगते! शिखा जोर-जोर से शेक्सपियर के एज यू लाइक इट को रटने लगती, या शेली को रटने लगती! कीट्स उसे बिलकुल भी समझ नहीं आते थे और उस पर जहां वह ट्यूशन पढ़ने जाती थी, वहां पर सर से दूर रहकर ही बात कर सकती थी।
“हे, कैन आई आस्क यू समथिंग?” एकदम से ब्लिंक होती स्क्रीन पर रोबिन का मैसेज आया!
शिखा एकदम से भोगांव की कहानी से फरीदाबाद के अपने छोटे कमरे में आ गई! उसके मोबाइल पर इस बार मैसेज था! उसके हाथों में पसीना घिर आया! पसीना उसके शरीर पर भी था, मगर फिर उसे लगा कि आखिर वह इतना डर क्यों रही है? आखिर सात समंदर पार बैठे किसी अनजाने आदमी से उसे भय क्यों हो? उसे क्या डरने की जरूरत? जब वह विशाल की विराट छाया से बाहर आ गई तो आखिर वह रॉबिन के मैसेज से ही क्यों डर रही है?
उसने अपने मन से पूछा कि क्या उसे वाकई रॉबिन से डर लग रहा है? उसकी हथेलियों ने उसे छूकर कहा, “नहीं!” वह उस छुअन से दूर जाना चाहती थी, उतनी ही दूर जितनी वह इस समय विशाल से है! ओह विशाल! आखिर वह ऐसा क्यों था? वैसे उसके जीवन में वह सबसे सवाल पूछ सकती थी, और भगवान से भी कि आखिर ऐसा उसके साथ ही क्यों?
भोगांव में ब्याहे न जाने के भय से वह जेके सर की क्लास में भी रोज़ जाती थी! शिखा को अंग्रेजी साहित्य में कतई भी रुचि नहीं थी, उसे तो कपड़ों पर अपनी कलाकारी दिखाना पसंद था। पुरानी साड़ी के पल्ले पर गोटा या मुकेश लगाकर वह एकदम नया सा उन्हें बना लेती। अपनी मां के लिए ब्लाउज के नए-नए डिजाइन बनाती, शिल्पा की लिक्विड और सादी बिंदी से वह नई बिंदियों की नई डिजाइन बनाती, मगर इन सबसे क्या? इन सबसे तो वह केवल गृह विज्ञान में आगे बढ़ सकती थी, और गृह विज्ञान माने मैनपुरी, इटावा या भोगांव तक का सफ़र! इटावा तो चलो तब भी ठीक, मगर भोगांव और छिबरामऊ? वह घबरा उठती और रात भर अंग्रेज़ी साहित्य के प्रश्न रटती रहती। जेके सर के घर भी ट्यूशन बेनागा जाती!
जेके सर की क्लास में लगभग उसके साथ की सभी लडकियां आती थीं। उस बड़ी सी बैठक में बड़ी-बड़ी दो मेजों के किनारे-किनारे करीब अट्ठारह से बीस कुर्सियां होती थीं। उन पर एक सा मेजपोश बिछा रहता था। उस मेज पर दो बड़े-बड़े गुलदस्ते होते थे, जिससे जमीन तक पहुंचती हुई चादर न हट जाए, मगर गर्मियों के मौसम में मुए पंखे के चलते चादर हिल जाती थी और जेके सर का पैर दाईं या बाईं तरफ बैठी हुई लड़की के साथ क्या कर रहा रहा है, वह चुगली कर देता था। उन हलचलों में खुद को स्थिर रखते हुए ही शेली और कीट्स समझना होता था और उसके साथ ही समझनी होती थी टेस की व्यथा! कहां बदला है कुछ? टेस को समाज ने तब नहीं अपनाया था, अब भी शिखा अगर जेके सर की शिकायत करती तो क्या होता? कौन उसकी बातों पर भरोसा करता? वह टेस की तरह नहीं होना चाहती थी! टेस की व्यथा की कहानी सुनाते-सुनाते जब जेके सर के पैर उसकी सलवार में घुटने तक चले आते, तब वह खुद ही टेस में बदल जाती! और मन ही मन कहती, “कुछ नहीं बदला, कुछ नहीं बदल सकता!”
एक साल उसने कैसे काटा था, वह ही जानती थी। जैसे ही उसके एमए प्रथम वर्ष में साठ प्रतिशत अंक आए, उसने ठान लिया था कि घर पर पढ़ लेगी, मगर जेके सर के पास नहीं जाएगी, मगर उसकी जरूरत नहीं पड़ी। बुआ के घर जब वह छुट्टी में गई थी तभी फूफा के दोस्त अपने बेटे विशाल के लिए हाथ मांगने के लिए आ गए थे।
शिखा को आज भी वह दिन याद है, जब फूफा ने उसकी मां को रिश्ते के बारे में बताया! और विशाल भी कोई छोटा-मोटा आदमी तो था नहीं। पुणे में नौकरी कर रहा था। एक बड़ी कंपनी में सेल्स मैनेजर था। क्या नहीं था उसके पास? विशाल को जब उसकी मां ने देखा तो उनके कलेजे में ठंडक पड़ी थी। और बिना कुछ ज्यादा पूछताछ किए उन्होंने एमए फाइनल का रिज़ल्ट आते ही विशाल के साथ हाथ पीले कर दिए थे शिखा के।
शिखा से कौन पूछता? उन दिनों पूछने का रिवाज़ क्या था और शिखा के मन में डर भी था कि कहीं उसने कुछ उलटा सीधा कदम उठा लिया तो उसका पूरा जीवन इटावा या शिकोहाबाद या फिर भोगांव तक ही सिमट जाएगा! और भोगांव! वह फिर से सिहर जाती! और यही कारण है कि उसने विशाल से न ही कुछ ज्यादा बात की, और न जी कुछ पूछा!
तो एक ही साल में बरीक्षा, गोद भराई, तिलक और अंतत: शादी के बाद शिखा कानपुर और उसके बाद पुणे आ गई।
विशाल की विराट छाया में शिखा एकदम खिलती गई, निखरती गई। शिखा के मन का सारा भय अपने आप जाता रहा। विशाल में कोई दोष नहीं था। उसे जितना विशाल के बारे में शक था, संदेह था, समय की धूप ने उसके मन में बसे ऐसे हर दाग को सुखा दिया। विशाल ने उसे सब कुछ दिया, मान सम्मान और नन्ही अनुष्का। अनुष्का के आने के साथ तो शिखा एकदम ही खुशी से पगला गई थी। गुनगुनी धूप को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर कितना खुश थी शिखा।
रोज़ अपनी ज़िन्दगी में एक-एक कतरा धूप का इकट्ठा करती, और उनसे अपने मन का आंगन भर लेती। रात को हरसिंगार से लीपती मन का अकेलापन और भर लेती विशाल को! उसका विशाल! केवल उसका! बस यह अधिकार की भावना ही उसे नया जीवन दे देती।
मां खुश थीं! आखिर उनकी इंग्रेजी पढ़ी हुई लड़की अपने परिवार में खुश थी। अब तो उनके पास मोहल्ले भर में कहने के लिए बहुत कुछ था, इंग्रेजी वाली बेटी के साथ, इंग्रेजी माहौल में ही आंखें खोलनेवाली नातिन!
सब खुश थे, संतुष्ट थे! उस संतुष्टि की छांव में बैठकर एक परिवार नया आकार ले रहा था। अब अनुष्का भी बड़ी हो गई थी और मां अब इंग्रेजी वाला नाती भी चाहती थीं।
“हे, आई वांट टू सी यू ऑनलाइन!” शिखा एक बार फिर से टहलते हुए वर्तमान में चली आई। रॉबिन फिर आ धमका था।
“हे प्रभु! मैं क्या करूं?” शिखा ने अपना सिर पीट लिया! शाम भी होने लगी थी। अनुष्का को वह क्रेच से लेने जाना चाहती थी, मगर एक अनजान भय उसके दिल में था। कई बार उसे लगता था कि कहीं रॉबिन के रूप में विशाल ही तो उसे परेशान नहीं कर रहा! कहीं विशाल ही तो उसकी और जांच पड़ताल करने नहीं आ गया। उसके हर क्षण को विस्तार देने वाला विशाल आखिर बोनसाई क्यों बन गया था और अब ऐसे फेक प्रोफाइल के ज़रिये उस पर नज़र रख रहा था। उसे पिछले कुछ दिनों से लग रहा था कि वाकई विशाल ही है जो रॉबिन बना बैठा है! या रॉबिन और कोई है? अगर और कोई है तो कौन? और अगर विशाल है तो अब क्या? उसका सिर कांपने लग गया था! उसने फटाफट से अपनी कार निकाली और अनुष्का के क्रेच की तरफ चल दी!
उसके दिमाग में रॉबिन और विशाल दोनों ही गड्डमड्ड हो रहे थे। एक तरह रॉबिन था और दूसरी तरफ विशाल! विशाल आखिर ऐसा क्यों हो गया था?
क्रेच की तरफ बढ़ती हुई शिखा ने फोन स्विच ऑफ कर दिया था। अपनी मां को उसने अपना नया नंबर दे दिया था, तो उसे बहुत डर नहीं था।
अनुष्का को लेकर जब वह घर की तरफ आई तो उसने पुलिस को वो सभी संदेश दिखाए जो उसके फोन पर और लैपटॉप पर थे। पुलिस को मैसेज देकर उसे थोड़ी संतुष्टि मिली और उसे अहसास हुआ कि चलो कोई तो साथ है। काश, ये साथ उस समय मिला होता, यह साहस उस समय आया होता, जब उसकी सलवार के अन्दर एड़ी से चलता हुआ जेके सर का पैर घुटने और ऊपर आता था, और फिर उसी के दौरान टेस को क्लेयर के द्वारा उसके छोड़ा जाना जेके सर खूब जोर देकर पढ़ाते थे, तो शिखा का मन भी सोचता “सही है, मेरा कौन भरोसा करेगा!” और वह चुपचाप बैठी रहती। सर की टांगें, जहां तक जातीं, वह जाने देती, उसकी आंखों में टेस और उसके पति की तस्वीर उभर आती। सर समझाते “टेस को निर्दोष होते हुए भी समाज ने दोषी माना! हालांकि हार्डी ने समाज की विसंगतियों को दिखाने की कोशिश की है, फिर भी जरा सोचिए अगर टेस उस दिन चुप्पी साध जाती, अपने साथ हुए बलात्कार की बातें किसी को न बताती तो क्या होता! डियर गर्ल्स, इन प्रैक्टिकल वर्ल्ड साइलेंस इज द बेस्ट डिफेंस एंड यू कैन नोट ओपेन्ली स्पीक अबाउट रेप! चेस्टिटी वंस गोन, इट गोज़ फॉरएवर!”
शिखा अपनी पवित्रता को समेट लेती, क्या करती है सर की टांग! कुछ ख़ास नहीं! और उसके पास सबूत क्या था! अगर वह फेल हो गई तो सब गड़बड़ हो जाएगा! मां इटावा या भोगांव या सैंफई ब्याह देगी! वह उस पीड़ा को अनदेखा कर देती, चेस्टीटी पर लेक्चर देते देते सर का मन जब तक होता तब तक वे अपनी टांगों को सफ़र कराते! शिखा आंखें मूंद लेतीं, होंठ कस लेती और निर्बाध, निर्विरोध यह प्रक्रिया चलती रहती।
शिखा ने आंखें खोलीं, घर आ गया था, अनुष्का को लेकर वह घर में घुसी! एक शांत अकेलापन उसकी प्रतीक्षा में था। उसे यही पसंद था। उस रात भी यही एकांत था, जब विशाल ने उसे अपने जीवन के उन सभी पन्नों पर जाने की इजाजत दी थी, जिन्हें उसने अभी तक देखा भी नहीं था, या शिखा को अहसास भी नहीं था कि ये भी पन्ने हो सकते हैं। विशाल ने अपने हर प्रेम की कहानियां उसे बताईं, सीमाएं बताईं। उसने किस लड़की के साथ किस सीमा तक प्रेम किया, किस लड़की की देह में उसे क्या पसंद था और वह उनमें से शिखा में क्या खोजता था, उसने सब कुछ शिखा को बताया। किले में प्रवेश करती हुई शिखा कब अपने बिस्तर पर एक ऐसे विशाल की बाहों में आ गई थी, जो लौकिक होकर भी उस रात अलौकिक हो गया था। वह एक छोटे बच्चे की तरह हो गया था। देह से पूर्ण संतुष्टि के बाद भी कभी-कभी जो ऊपरी परत शिखा को अनछुई सी लगती थी, उस रात विशाल ने वह परत तोड़ दी थी और मन के साथ अपनी देह शिखा की झोली में डाल दी थी। उस रात शिखा ने विशाल की बिखरी हुई देह को समेटा था और उसे एक करते हुए खुद भी एकाकार हो गई थी। वह रात शांति और अकेलेपन की रात थी।
आज भी शिखा संतुष्टि के उस क्षण को कोसती है, जब उसने विशाल को जेके सर की बात बता दी थी! और उसकी टांग पर रखी हुई विशाल की टांग इस तरह से उछली थी जैसे उसमें कुछ करेंट हो! संतुष्टि के वे क्षण शिखा अभी तक सहेज भी न पाई थी कि विशाल के मन में संदेह के बादल घुमड़ने लगे।
“तुमने नहीं बताया था कि तुम पहले से खेली खाई हो!” विशाल फनफना उठा!
“क्या मतलब है, पहले से खेली खाई से?” आहत आकांक्षाओं को समेटते हुए शिखा ने विशाल की तरफ देखा
“खेली खाई माने पहले से सब पता था, कौन कहां-कहां छुआ है तुम्हें! अभी तो केवल तुमने यही बताया, अभी तो न जाने कितना तुम्हारे मन में होगा!” विशाल ने आकर उसका चेहरा थाम लिया था!
“विशाल, ये कैसी बातें तुम कर रहे हो? मेरा क्या कसूर था इसमें?” शिखा के दिमाग में सर की बात बार-बार गूंज रही थी “साइलेंस इज द बेस्ट डिफेंस!”
बहुत ही जल्द वह रात क्लेश और कलह की रात बन गई और उनके दांपत्य जीवन की आख़िरी रात। उस पर तमाम लांछन लगाए और अगले ही दिन से विशाल का व्यवहार शिखा के प्रति हमेशा के लिए बदल गया। शिखा के मन के अंधेरे ने कई बार विशाल से बात करके उजाला लेना चाहा, मगर हर बार विशाल का मन इतना कृपण हो गया कि उसने उस अंधेरे के पास जाने से ही इनकार कर दिया। शिखा का अंधेरा अकेलापन दिनों-दिन आहत हो रहा था। वह रोज़ देह की एक सीढ़ी रोज़ चढ़ती मगर रोज़ ही उतर आती! विशाल की विराटता केवल टांगों की छुअन तक ही सिमटकर रह गई थी। बार बार वह विशाल से पूछने की कोशिश करती, बार-बार वह सोचती कि उसकी क्या गलती? मगर फिर दादी और जेके सर दोनों ही चुप्पी की तारीफों पर नाट्यशास्त्र लिखते नज़र आते। उनका बस चलता तो चुप रहने के सारे सूत्र स्थापित कर देते. और ऐसे में उसे फिर टेस याद आती, जब वह पढ़ती थी, तब टेस की कहानी पर खूब हंसती थी, “पागल थी, क्यों बोला कि उसके साथ क्या हुआ? अब कौन स्वीकारेगा उसे!” दादी की बात याद आती, दादी तो चुप्पी के खूब बखान करती थीं, “एक चुप हज़ार सुख!”
मगर वह भी तो चुप नहीं रह पाई थी। उसे क्या पता था कि इतने वर्ष का साथ केवल इसी बात पर लांछन लगाने लगेगा! जबकि वह अपनी वर्जिनिटी का सबूत भी शादी की पहली रात को दे चुकी थी।
एक साल अनबोलेपन के साथ एक ही छत के नीचे जब शिखा के लिए रहना संभव न हुआ तो अपनी मां को सारी बात बता दी शिखा ने!
मां ने खूब कोसा, पापा ने मगर उसका साथ दिया और ले आए थे पुणे से, दिल्ली! मां ने गांव आने से एकदम मना कर दिया था “क्या मुंह दिखाएंगे?” वह सिसक उठी थी, दरअसल उनके गुस्से में भी वही भाव था, “चुप नहीं रह सकती थी क्या!”
दिल्ली आकर एक नए सिरे से जिंदगी शुरू की थी शिखा ने। पढ़ी-लिखी थी ही, और अब अंग्रेजी भी ठीक-ठाक ही थी। बीपीओ नए-नए आए थे तो एक बीपीओ में उसे कस्टमर केयर विभाग में नौकरी मिल गई थी। अपने घाव सहलाती हुई वह आगे बढ़ रही थी कि तभी अकेलेपन की सुरंग में रॉबिन का प्रवेश हुआ था। फेसबुक पर हालांकि उसे चैटिंग का शौक नहीं था, मगर उस दिन न जाने कैसे और किन क्षणों में एक बहुत ही हैंडसम विदेशी युवक के मैसेज का जबाव उसने दे दिया था। रॉबिन के अनुसार उसकी बीवी उसे छोड़कर जा चुकी थी और अब उसके बेटे की जिम्मेदारी उसी पर थी। वह एक हिंदुस्तानी लडकी की तलाश में है, क्योंकि हिंदुस्तानी लडकियां वफादार होती हैं। उसे अपनी सोसाइटी की बेवफा लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं थी! पश्चिम की खोखली उदारता से शिखा अब परिचित हो चली थी. दादी भी कहती थी, “पुरबा बादल लाती है, पछुआ तो सूखापन!”
पछुआ के सूखेपन से कौन न उकता जाए! तो करीब दो साल बाद उस दिन शिखा हंसी थी। उसके चेहरे पर मुस्कान आई थी और दिल में गुदगुदी हुई थी। पेट में उसी तरह तितलियां उमड़ी थीं जिस तरह से विशाल से पहली बार मिली थी।
शिखा के मन में फिर से एक बार अरमान जागे! हालांकि अभी विशाल से कानूनी तलाक नहीं हुआ था, मगर उसने अपनी तरफ से तलाक की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। आम सहमति पर तलाक पर बात बनी थी। केवल बेटी के लिए मेंटिनेंस लिया जाएगा, बाकी शिखा खुद करेगी। शिखा को भी केवल बेटी का सुरक्षित भविष्य चाहिए था, उसने भी आपत्ति नहीं की। वैसे भी आपत्तियों का संसार बहुत छोटा होता है। शिखा क्या करती? वह अविश्वास के जाल में फंसे रिश्ते में फंसना नहीं चाहती थी। जो हुआ वह हुआ। अब क्या हो सकता है। मां सुलह के पक्ष में थीं, जबकि पापा एकदम नहीं! सुलह के पक्ष में तो अब शिखा भी नही थी, आखिर क्यों और किस बात की सुलह? उसकी गलती क्या थी? वह तो अपना प्रेम प्रसंग कहीं लेकर नहीं गई, उसका तो शोषण हुआ था! और न जाने कितनी लड़कियों के साथ उन आठ सालों में हुआ होगा, जो उनसे पढ़ने जाती थीं। शिखा ने माफी से भी इंकार कर दिया था।
शिखा बस अपने अकेलेपन की खोह में विश्राम करने चली गई थी। कितना सुकून था। वह पिछले दो वर्षों में तीन बार के करीब विपश्यना के शिविर में भी गई थी, अब उसने वाकई मौन और चुप की चादर में रहना सीख लिया था। उसमें संतुलन आया था और अब उसका एक प्रमोशन भी हो गया था। शिखा को उम्मीद थी कि अपने पापा और भाइयों के सहयोग से वह जल्द ही जीवन में स्थिर हो जाएगी।
ऐसे ही स्थिर जल में हलचल मचा दी थी रॉबिन ने! अब वह अक्सर उससे चैट करती। अनुष्का को सुला देती और उससे बातें करती। अपने बीते हुए कल की बातें, अपनी बेटियों की बातें। ऐसे ही एक दिन रॉबिन ने उससे प्रेम का इज़हार कर दिया था। कई बार उसे मगर शक होता, रॉबिन की बातों पर! जैसे एक तो उसके दोस्त बहुत ज्यादा नहीं थे, और उसकी प्रोफाइल में भी बहुत कुछ नहीं लिखा था। उसकी प्रोफाइल अभी डेढ़ ही साल पुरानी थी और सबसे जरूरी बात जो उसे लगती थी वह यह कि आखिर वह है कहां का? वह तो खुद को टेक्सास का बताता था, मगर फोटो ऑस्ट्रेलिया या कहीं और के लगाता था। एक दो फोटो उसके हरिद्वार के थे, और उसकी पोस्ट भी कुछ ख़ास नहीं हुआ करती थीं।
एक दो बार उसने रॉबिन से ज़िक्र भी किया तो उसने यह कहकर टाल दिया कि वह बहुत ज्यादा सोशल नहीं है, इसलिए यह सब है! मगर उसकी इस बात पर वह कोई जबाव नहीं दे पाता था कि आखिर उसी का पता उसे किसने दिया! इस पर वह हंसकर रह जाता!
शिखा ने उसके प्रपोज़ल का कोई उत्तर नहीं दिया था। तभी एक दिन उसका मैसेज आया कि उसने उसके लिए कुछ गिफ्ट भेजे हैं, और उसे उसके एकाउंट में कुल दस हज़ार डॉलर डालने होंगे, किसी तरह के शुल्क का नाम उसने बताया।
अब शिखा का माथा ठनका! दस हज़ार डॉलर? वह उछल पड़ी!
“यस डियर! यू नो, आई हैव डन लॉट्स ऑफ़ परचेज फॉर यू ओनली!”
और उसने कई सारी तस्वीरें उसके मेसेंजर में भेज दीं! शिखा को इस पैसे की बात से घबराहट होने लगी थी। संदेह का एक काला बिंदु अब और भी गहरा गया था। संदेह की पीठ पर बैठकर जीवन की नौका पार करने से घबराकर ही तो वह विशाल से परे आई थी, अब ये कौन सा नया छल था!
उस दिन के बाद उसने रॉबिन से बात करनी बंद कर दी थी और अपना लैपटॉप भी बंद कर दिया था, उसने रॉबिन को ब्लॉक कर दिया था, मगर वह नई-नई आईडी से उसके मैसेज बॉक्स में आ जाता। एक हफ्ते तक ऐसा नाटक चलने के बाद अंतत: उसने साइबर सेल में अपनी शिकायत दर्ज करा दी थी। पुलिस उन सभी आईडी पर नज़र रख रही थी। हालांकि पहले तो पुलिस ने उसे ही फटकार लगाई थी, मगर बाद में वह उसके प्रति नरम हो गई थी। शिखा ने इस बार अपनी गलती मानते हुए, पुलिस से मदद का अनुरोध किया था। अब रॉबिन उस पर भावनात्मक दबाव भी डालने लगा था, मैसेंजर उसने अनइंस्टॉल कर दिया था, मगर फेसबुक का क्या करे? रॉबिन उसे जी टॉक पर भी मैसेज भेज रहा था।
इधर पुलिस उसके मेल आईडी पर भेजे गए मैसेज और फेसबुक मैसेज के आधार पर और उसकी प्रोफाइल के आधार पर अपना काम कर रही थी।
पुलिस के ताने-बाने के बीच शिखा हिसाब लगा रही थी कि कैसे एक चुप जिंदगी को नरक बनने से रोक लेता है और यह भी वह बार-बार सोचती जा रही थी कि पुरुष अपने तो प्रेम प्रसंग सुना सकता है, मगर पत्नी के साथ हुआ यौन शोषण भी उसे बर्दाश्त नहीं, उसे जूठन पसंद नहीं आती, भले खुद कितनों को जूठा करता रहे।
शिखा जितना सोचती, उतना ही बेचैन हो जाती। स्त्री पुरुष के लिंगभेदी धागे उसे बांधने लगते। उसके दिमाग में टेस, वह, विशाल, क्लेयर सब एक-एक कर आते!
अनुष्का ने सोते-सोते उसकी छाती पर हाथ रख दिया था, और चिपट कर सो गई थी। वह भी नन्हीं हथेलियों को अपनी हथेलियों में समेटे सो गई। अगले दिन रविवार था, और उसे आराम से उठना था। सुबह उठते ही उसने अपना मैसेज बॉक्स देखा, आज खाली था! उसने राहत की सांस ली!
अपने एक कमरे में फ़्लैट में खिड़की से धूप को बुलावा भेजा और चल दी चाय बनाने! योग करने के बाद उसने टीवी खोला, टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी “अकेली महिलाओं को निशाना बनाकर ठगने वाले अंतरराष्ट्रीय गिरोह का पर्दाफाश! अब तक लाखों की कर चुके थे ठगी, तलाकशुदा और अकेली महिलाएं होती थीं निशाना!”
शिखा ने चाय पीते हुए खुद से कहा “इस बार मुंह खोलने का फायदा हुआ, हमेशा चुप भली नहीं होती!”