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जब तक पीठ पर बच्चे को
बाँधकर रणक्षेत्र में कूदती
न दिखे स्त्री,
संसार ये मानता ही नहीं
कि हर क्षण एक युद्ध
लड़ रही है स्त्री!
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दो
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ईश्वर का एक चमत्कार
खटकता रहा मुझे जीवन भर
स्त्री की पीठ पर उगे
जब जब देखे छह अतिरिक्त हाथ!
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तीन
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हर पुरुष की
सफलता के पीछे
सदैव रहा
एक स्त्री का हाथ!
पर एक स्त्री अकेली ही
लड़ती रही
सफलता पाने के लिए,
क्योंकि पुरुष के अहम को
कभी भाया ही नहीं
उसके पीछे खड़े रहना!
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चार
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बस चाभी भर दो
चौबीस घण्टे टिक-टिक
चलती रहेगी
घड़ी नहीं जानती
कार्य के घण्टे होते हैं
बस आठ!
वो बिन चाभी की एक घड़ी है…
स्त्री भी कहाँ जानती है!
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पाँच
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कुछ स्त्रियाँ
पुरुषों के पदचिन्हों पर
चलते हुए, भरती हैं
उनके कदमों की धूल
अपनी माँग में!
कुछ स्त्रियाँ
पुरूषों से परे हटकर
छापती हैं अपने पदचिन्ह,
माँग में सिंदूर से अधिक
उन्हें भाती है
बिवाइयों में धूल!
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