1. याचिका
वो चाहता है कम से कम हों
दीवारघड़ियां, अलार्मघड़ियां और हाथघड़ियां
सिर्फ जरूरत भर हों घड़ियां
और उनसे भी हटा दी जाए
टिक-टिक की उबाऊ आवाज़
उसे सख्त चिढ़ है
टीवी, रेडियो, मोबाइल, लैपटाॅप जैसी हर चीज़ में
समय के उल्लेख से
वो मानता है कि तुरन्त प्रभाव से
हटा दिया जाना चाहिये
इन निजी चीज़ों से समय का उल्लेख
उसकी राय है
कि ज़रूरत से ज्यादा हो गया है
समय का दखल,
आखिर क्यों हर तीसरा आदमी
समय पूछ रहा है,
क्या काफी नहीं
सिर्फ सुबह-दोपहर-शाम या रात कहना
ख़ैर जो भी हो,
मानव का पता नहीं,
पर समय ने एक याचिका दायर की है
कि वह मान नहीं, मुक्ति चाहता है ।
2. प्रश्न
प्रश्न के भीतर है प्रश्न
जैसे खोल के भीतर दूसरा खोल
दूसरे के भीतर तीसरा
कितने भी खोल फोड़ दो
उघाड़ दो कितनी ही तहें
एक नये प्रश्न की परत
लहराती मिलती है
कौतुक मन रहता है प्रयासरत
खोल देने को उस अंतिम प्रश्न की तह
जिसके बाद भीतर से झांकेगा
एक अंतिम उत्तर
बिना किसी प्रश्न के साथ
किंतु उसका हर प्रयास व्यर्थ है
हर बार पूरी उम्मीद से
लाखों प्रश्नों को अंतिम मान
खोल लेने के बाद भी
मायावी प्रश्न ‘क्यों’ पीछा नहीं छोड़ता
आखिरकार वो
छद्म संतुष्टि के लिये रचता है
अपना अंतिम उत्तर
‘ईश्वर’।
3. चौथ का चांद
वे इमारतें जो सबसे ऊंची और भव्य थीं
वहां सबसे पहले पहुंचा चौथ का चांद
जिनके पास थी बालकनी या चहलकदमी वाली छत
फिर वहां उतरी उसकी छवि
ऊंचाई से गहराई की तरफ रहा
उसका दिखना
ओहदे के हिसाब से
भव्यता के घटते हुए क्रम में
बहुत से लोगों ने प्रतीक्षा की चांद की
बहुत सी स्त्रियां किवाड़ों पर देर तक
लगाये रहीं टकटकी
सबसे आखिर मे देखा
उस स्त्री ने चांद
जिसका पति दिन भर के श्रम के बाद
सुनिश्चित करके आया
कि परिवार में सबकी थाली मे हो
चांद के आकार सी रोटी।
4. अतिक्रमण
शोर में हर बार अनसुना हो जाने से
साइकिल से उतार दी गई है
साइकिल की घंटी
‘बचाओ’ की आवाज के बरअक्स
बहुत तेज़ कर दिये गये हैं
मोटरगाड़ियों की गतियां और हाॅर्न
गाड़ियां आसानी से छुपा सकती हैं
अपनी गलतियां
‘देख कर नहीं चल सकता’
यह जुमला सिर्फ गाड़ी कह सकती है
किसी पैदल सवार को
इसके उलट संभव नही
अक्सर देखा है मैंने
लोगों को, शरीर की चोट से ज्यादा
गाड़ी के स्क्रैच पर चिंता जताते
तकनीक के जरिये
हमारा दिखावा
अतिक्रमण कर रहा है
हमारी मानवीयता का।
5. वह एक लय के लिये लड़ा
वो समाज के सबसे निचले खांचे में था
बैठना नसीब मेंं नहीं था उसके
उसके हाथ वाला रिक्शा इतना आदिम था
जिसने खुद उसके लिये नही बनायी कोई सीट
खींचने के लिये दो हत्थे थे बस
कई बार वो परिवार के लिये लड़ा
कई बार अधिकार के लिये
कई बार अत्याचार के खिलाफ
तो कई बार भ्रष्टाचार के
बाढ़ में
सरकार की तरफ से फेंके जा रहे
फूड पैकट के लपकने में तो महारत थी उसे
उसके लिये हर दिन एक आपदा था
जीवन भर इस लड़ाई इस चीख में
उसका चिड़चिड़ा हो जाना स्वाभाविक था
भूख के प्रबंध के सिवा
कुछ नहीं था उसके पास
उसने कई बार बिना कुछ समझे
नारे लगाती भीड़ के साथ नारे लगाये
संगीत के नाम पर उस रिक्शे की खट खट
और लोगों का शोर भर था उसके पास
किसी को नहीं पता
उसकी चिड़चिड़ाहट की असल वजह
उसकी दिनचर्या से गायब वह लय थी
जिसे जीवन कहा जाता
कई बार एकान्त में
वह ईश्वर से लड़ा
सिर्फ उस लय के लिये…।
6. हाशिये पर छूट जाना
दिन को बांटते हैं जब
पूर्वाह्न और अपराह्न में
कुछ क्षण छूट जाते हैं बीच के
जिन्हें अपनी श्रेणी से
छिटकती दिखती हैं दोनों बेलाएं
स्त्री और पुरुष में
सबसे उपयुक्त वर्गीकरण करने पर भी
एक वर्ग छूट जाता है आबादी का
जो पहचान पत्रों में
पहचान वाला खाना नहीं भर पाता
बांटा जाता है जब शहरी और ग्रामीण में
छूट जाता है एक छोटा सा तबका
आदिवासियों का
सीमा निर्धारित होती है जब मुल्क की
बच जाता एक विवादित टुकड़ा
जिसमें पांव पड़ने पर गिरफ्तार हो जाता है
एक देश का चरवाहा दूसरे देश में
हमें ध्यान रखना होगा
हाशिये पर चले गये
इन छूट गये लोगों और चीजों का
जो बहुत ज्यादा मे बहुत कम हैं
क्योंकि सबसे भयावह स्वप्नों में एक है
अपने काफ़िले से
बिछड़ जाने का स्वप्न ।