गंगा की कल-कल धारा
कहती तू रूक जा रे
मैं कहती गंगा तू बहती जा रे।
तट है, तेरा बड़ा निराला
बहती जिसमें निर्मल धारा
धाराएं बहती जाती हैं
तू कभी नहीं रुक पाती है।
लहरें कुछ गुन-गुन गाती हैं
महिमा पर कुछ इतराती हैं
पदनख की याद दिलाती हैं
तेरी पावन गरिमामय स्वर में
अपना राग मिलाती हैं।
मैं श्रांत पाथिनी हास-त्रास में
जीवन ढोती चलती हूँ,
करती हूँ नमन, पुण्य सलिल
अपराध बोध दुहराती हूँ ।
मेरी कुंठा में पतित पावनी
तुम मत अपना झाग भरो
बहती जाओ सागर तट में
सागर में सलिल सुहाग भरो।
तेरे तट पर मानव संतति
कृति गाथा गाएंगी।
निर्मल जल में तन-मन धो कर
मानवता फिर इतराएगी।
*
मेरा शहर
बड़ी-बड़ी मीनारों वाला
रौनक से भरपूर
अरमानों की ऊंचाई छूने वाला
मेरा शहर आज शांत है
मेरा शहर आज उदास है।
कहते थे दिन-रात कभी ये न सोता है
वो आज भी न सोता है पर उदासी में रोता है
मेरा शहर
जगमगाती बिजलियों की चकाचौंध सा होता था
मेरे शहर में हर एक दिन नया सा होता था
पर आज
मेरा शहर शांत है
मेरा शहर आज उदास है।
बस्ती-बस्ती
गली-गली
सब जैसे रह गये हैं ठहर
ठहर गए हैं अब आठों पहर
क्योंकि
मेरा शहर शांत है
मेरा शहर आज उदास है।
वो ब्रॉडवे की भीड़भाड़
और अप से डाउन टाउन का ताव
वो सड़कें वीरानी
हैं जिनकी अनगिनत कहानी
आज शांत है
क्योंकि
मेरा शहर आज कहानियों में एकांत है
मेरा शहर आज शांत है
मेरा शहर आज उदास है
अचरज से भरपूर
लेडी लिबर्टी
की शान से चूर
वो सायरन का बजना
अचंभित सा कर जाए
टैक्सी और कार का
रफ़्तार में आना
इसी को तो कहते हैं
शहर का गाना
पर आज
सब शांत है
मेरा शहर आज उदास है।
वो क्रिसमस में शहर का
दुल्हन सा सजना
लोगों का वहॉं मिलना और जुलना
वो टाइम्स स्क्वायर के रातों की लाली
सजती थी जब सेंट्रल पार्क की भी डाली
लगता था जैसे होने वाली है शादी
पर आज सब शांत है
क्योंकि मेरा शहर आज उदास है।
ऐ मेरे मौला इतना करम करना
मेरे शहर को अब
संक्रमण के चरम पर ना रखना
मेरे शहर को फिर से हँसा देना
क्योंकि मेरा शहर
सपनों की उड़ान है
मेरे शहर में
हम सब की जान है।