(1.)
जवान हो रहा मेरा गाँव
इन दिनों
मैं मिल रहा हूँ
उस मिट्टी से
पहाड़ से
नदी से
जंगल से
जहाँ
मेरी बचपन की
मीठी यादें
जवान हो गयी हैं
और जवान हो रहा
मेरा गाँव– सिप्पी;
कि सड़कों ने
रूप नयी पायी है
चौड़ी और पक्की,
रात का अन्धेरा
ढल गया है
बिजली के साये में
और वरण किया है
नव वसन
जोड़कर जगत से
आसमानी तार।
बाल्यकाल की
स्मृतियाँ सहेजकर
जवान हो रहा मेरा गाँव।
(2.)
अदृश्य
जो नहीं दिखता
जरूरी नहीं
कि वो है नहीं;
कितना भयावह है
नहीं दिखना
फिर भी
मानस पर शासन करना।
मसलन–
ईश्वर है
आस्था में
विश्वास में
भय में
शोक में
लालच में
प्रपंच में
कल्पना में
और सबसे ज़्यादा
खूनी ढंगों में।
(3.)
मैं ऐसी न थी
ममता की कमी
मुझमें तो नहीं
प्रेम आज भी
कम तो हुई नहीं
पर थोड़ी सी
बदल ज़रूर गयी
कि
लाज तुमने न रखी
न समझा मेरा मर्म कभी
शोषण के सारे आयाम
आजमाता मुझपर बेहिसाब
हाँ दीन होती जा रही
मैं हीन होती जा रही
सरस बौछारे छलनी करती
मजबूत नींव न शेष रख पाती
ढह न जाऊँ तो क्या करूँ
तुझ पर नहीं तो कहाँ गिरूँ?
मैं ऐसी तो नहीं
तेरी मृत्यु मेरे हाथों
ऐसी चाहत मेरी न थी
मुझमें समाना
एक दिन तो होना
पर अकाल समाधि?
यह तुमको था सोचना;
मुझ बूढ़ी को नित रुलाकर
रोया तू भी परिजन खोकर;
तुम ऐसे हो गये
वरना
मैं ऐसी न थी।
(4.)
आहत शहर
मद्धम रोशनी में
उदासी में डूबा
शाम का शहर
गुमसुम और मायूस सा
उस दर्द को जी रहा
जो तेरा, मेरा
हम सबका हैं;
चाँद भी अकेला
मौन ताक रहा
कि गोधूलि की
जगमगाती रौनक
भीड़ से आबाद बाज़ार
चौड़ी सड़के, पतली गलियाँ
घबराए से
चुप, स्पन्दन रहित!
बस मंडरा रहा
एक भयानक खौफ़
अदृश्य शत्रु का।
न जाने
कितने ऐसे घायल शहरों का
चाँद आज साक्षी है।
(5.)
स्मृतियों के सुन्दर फूल खिलाते जाए
पग-पग बढ़ाते वृद्धावस्था को पहुँचना
पर अंत:स्थल में एक बचपन जिलाते लाए
एक निश्चित दिन मृत्यु शय्या पर लेटना
प्रति पदचिह्न जीवन का सार छोड़ता जाए
विलाप और प्रलाप के हाहाकारों में
सुख और मधुरतम अलाप नित छेड़ता जाए
काँटों से भरा जीवन डगर है माना
स्मृतियों के सुन्दर फूल खिलाते जाए
(6.)
शुष्कता
जानता हूँ
नाम, रुतवा
शोहरत, ओहदा
कुछ भी तुझे
कमी नहीं
पर हृदय तेरा
बंजर जैसा
उसमें तनिक भी
नमीं नहीं
जिसकी सूखी
दरारों से
ज़बान पर उगते
काँटे और ज़हर ही;
तुझको मतलब है
बस
‘मतलबों’ से
परिवार, रिश्ते
हाशिये में रखकर
निभाती दुनियादारी
मुनाफे के शर्तों पर
आकर सिमटती
दरियादिली वहीं पर;
और मुझे
आता है तरस
तेरी दरिद्रता पर
प्रेम, संवेदना
सबमें बाँटे
पर अपने घर में
उसी को तरसे
ऐसा स्वभाव
ऐसा जीवन
तुम्हीं को मुबारक!