1.
दफ़्न करके हसरतों को मुस्कराना आ गया
ज़िंदगी हमको तेरा कर्ज़ा चुकाना आ गया //१//
थी अना की एक अदद ज़ंजीर अपने पांव में
तोड़कर उसको हमें अब सर झुकाना आ गया //२//
इश्क़ में डूबे हुए दो दिल हुए मायूस फिर
बीच में इस बार भी उनके ज़माना आ गया //३//
रास आई न कभी इस शह्र की रंगीनियां
याद हमको गांव फिर अपना पुराना आ गया //४//
क्या कहें, किससे कहें, सुनता नहीं कोई यहां
हाले दिल तन्हाइयों को अब सुनाना आ गया //५//
ये अदाकारी सिखा दी वक़्त ने हमको कि अब
मुस्करा कर छलकी आंखों को छुपाना आ गया //६//
रोशनी की आस में सूरज को ताकें कब तलक़
अब उजालों के लिए ख़ुद को जलाना आ गया //७//
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2.
सबको गिला है ये कि धुरंधर नहीं मिलता
क्यूं कोई मुक्कदर का सिकंदर नहीं मिलता //१//
हर चीज़ तो हासिल नहीं होती है सभी को
मिलता है किनारा तो समंदर नहीं मिलता //२//
बिस्तर मिले हैं उनको तो है नींदें नदारद
है नींद मयस्सर जिन्हें बिस्तर नहीं मिलता //३//
रुकता ही नहीं खर्च भले मर भी जाओ तुम
बिन पैसे कफ़न भी तो यां गज भर नहीं मिलता //४//
जी भर के मेरे ऐब गिनाता है मुझे तू
क्या ऐब तुझे वो तेरे अंदर नहीं मिलता //५//
मिलते हैं कई नकली ख़ुदा वाले जहां में
अब ढूंढे से भी असली कलंदर नहीं मिलता //६//
बस तेरे सिवा और नहीं कुछ दुआ मेरी
फिर क्यूं मुझे तू इक मेरे दिलबर नहीं मिलता //७//
जैसे कि मिला है सिला ये पारसाई का
यूं ही तो सरे राह में रहबर नहीं मिलता //८//
गुजरें हैं नज़र से हमारी कितने हसीं पर
उस जैसा कहीं भी कोई सुंदर नहीं मिलता //९//
बेकार समझना न कभी ताश में जोकर
रोते हैं रमी में जिन्हें जोकर नहीं मिलता //१०//